भक्ति योग -
माता देवहूति के द्वारा भगवान कपिल से भक्तियोग का मार्ग पूछने पर भगवान ने कहा " जो भेददर्शी क्रोधी पुरुष हृदय मे हिँसा ,दम्भ अथवा मात्सर्य का भाव रखकर मुझसे प्रेम करता है , वह मेरा तामस भक्त है । जो पुरुष विषय , यश और ऐश्वर्य की कामना से प्रतिमादि मे मेरा भेदभाव से पूजन करता है वह राजस भक्त है । जो व्यक्ति पापो का क्षय करने के लिए , परमात्मा को अर्पण करने के लिए और पूजन करना कर्तव्य है , इस बुद्धि से मेरा भेदभाव से पूजन करता है , वह सात्विक भक्त है । जिस प्रकार गंगा का प्रवाह अखण्डरुप से समुद्र की ओर बहता रहता है , उसी प्रकार मेरे गुणों के श्रवणमात्र से मन की गति का तैलधारावत् अविच्छिन्नरुपसेमुझ सर्वान्तर्यामी के प्रति हो जाना तथा मुझ पुरुषोत्तम मे निष्काम और अनन्य प्रेम होना यह निर्गुण भक्तियोग का लक्षण है । ऐसे निष्काम भक्त दिये जाने पर भी , मेरी सेवा को छोडकर सालोक्य(भगवान के नित्यधाम मे वास ) सार्ष्टि ( भगवान के समान ऐश्वर्यभोग ) , सामीप्य ( भगवान की नित्य समीपता ) , सारुप्य ( भगवान का सा रुप ) , सायुज्य ( भगवान के विग्रह मे समा जाना , उनमे एक हो जाना या ब्रह्मरुप प्राप्त कर लेना ) मोक्ष तक नही लेते
माता देवहूति के द्वारा भगवान कपिल से भक्तियोग का मार्ग पूछने पर भगवान ने कहा " जो भेददर्शी क्रोधी पुरुष हृदय मे हिँसा ,दम्भ अथवा मात्सर्य का भाव रखकर मुझसे प्रेम करता है , वह मेरा तामस भक्त है । जो पुरुष विषय , यश और ऐश्वर्य की कामना से प्रतिमादि मे मेरा भेदभाव से पूजन करता है वह राजस भक्त है । जो व्यक्ति पापो का क्षय करने के लिए , परमात्मा को अर्पण करने के लिए और पूजन करना कर्तव्य है , इस बुद्धि से मेरा भेदभाव से पूजन करता है , वह सात्विक भक्त है । जिस प्रकार गंगा का प्रवाह अखण्डरुप से समुद्र की ओर बहता रहता है , उसी प्रकार मेरे गुणों के श्रवणमात्र से मन की गति का तैलधारावत् अविच्छिन्नरुपसेमुझ सर्वान्तर्यामी के प्रति हो जाना तथा मुझ पुरुषोत्तम मे निष्काम और अनन्य प्रेम होना यह निर्गुण भक्तियोग का लक्षण है । ऐसे निष्काम भक्त दिये जाने पर भी , मेरी सेवा को छोडकर सालोक्य(भगवान के नित्यधाम मे वास ) सार्ष्टि ( भगवान के समान ऐश्वर्यभोग ) , सामीप्य ( भगवान की नित्य समीपता ) , सारुप्य ( भगवान का सा रुप ) , सायुज्य ( भगवान के विग्रह मे समा जाना , उनमे एक हो जाना या ब्रह्मरुप प्राप्त कर लेना ) मोक्ष तक नही लेते