"नाम रूप गुन अकथ कहानी..समुझत सुखद न परत बखानी..!
कहो कहाँ लगि नाम बडाई..राम न सकहि नाम गुन गाई..!!
****
रान एक तापस तिय तारी..नाम कोटि सत कुमति सुधारी..!!
***इस मायामय संसार में प्रत्येक वास्तु के साथ..उसका नाम और रूप दोनों लगे रहते है..बिना नाम के किसी वास्तु का रूप जानना कठिन है..वैसे ही..परात्मा का भी एक शाश्वत..सनातन और सदैव-सर्वत्र विद्यमान रहने वाला "नाम" है..! जो इस "नाम को जान लेता है..वह प्रभु के रूप को पहचान लेता है..और प्रभु के रूप के पीछे छिपे हुए उनके "शाश्वत-स्वरूप" का भी तत्वतः-वोध प्राप्त कर लेता है..और इस प्रकार वह "प्रभुजी" का ही हो जाता है..!
यह "नाम और "roop " का गुण एक अकथ कहानी है..जिसका वर्णन नहीं हो सकता..यह केवल समझाने में ही सुखद है..अर्थात यह केवल अनुभूति का विषय है..!
इस "नाम" की महिमा का कहाँ तक वर्णन किया जाय..स्वमेव भगवान् श्री रामचन्द्रजी इसका गुण-गान नहीं कर सके..!!
भगवान श्री रामचन्द्रजी ने तो केवल एक गौतम-ऋषि की पत्नी अहिल्या का ही अपने चरण-राज से उद्वार किया था..जबकि परात्मा के पावन "नाम" को जान कर सहस्रों लोगो की कुमति सुधर गयी..!
***
विचार करने की बात है..परमात्मा का वक् कौन सा नाम है..जो सदैव विद्यमान रहता है..?
वह एक "स्पंदन" है..जो न तो जन्मता है और न ही मरता है..अपितु वह सभी के जन्म और मरण का काराण है..!
तभी तो कहा गया है कि....
"कलियुग केवल नाम अधारा..सुमिरि सुमिरि नर उतरहि पारा..!
नहि कली कर्म न भगति विवेकू..राम नाम अवलंबन एकू..!!
***अर्थात.इस घोर .कलुय्ग में केवल परमात्मा के नाम का ही एक मात्र सहारा है..जिसका सुमिरण करते-करते मानव भव सागर से पाँव हो जाता है.. यह "नाम" ही एक मात्र अवलम्ब है..!यह नाम केवल मानव ही जान सकता है..और इसका उदघाटन समय के तत्वदर्शी महान-पुरुष द्वारा..एक सच्चे जिज्ञासु के ह्रदय में कराया जाता है..!
इस लिए अपना कल्याण चाहने वाले मानव को समय के तत्त्व दर्शी महान पुरुष की खोज करके निर्मल और समर्पण भाव से इस नाम का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए...!
कहो कहाँ लगि नाम बडाई..राम न सकहि नाम गुन गाई..!!
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रान एक तापस तिय तारी..नाम कोटि सत कुमति सुधारी..!!
***इस मायामय संसार में प्रत्येक वास्तु के साथ..उसका नाम और रूप दोनों लगे रहते है..बिना नाम के किसी वास्तु का रूप जानना कठिन है..वैसे ही..परात्मा का भी एक शाश्वत..सनातन और सदैव-सर्वत्र विद्यमान रहने वाला "नाम" है..! जो इस "नाम को जान लेता है..वह प्रभु के रूप को पहचान लेता है..और प्रभु के रूप के पीछे छिपे हुए उनके "शाश्वत-स्वरूप" का भी तत्वतः-वोध प्राप्त कर लेता है..और इस प्रकार वह "प्रभुजी" का ही हो जाता है..!
यह "नाम और "roop " का गुण एक अकथ कहानी है..जिसका वर्णन नहीं हो सकता..यह केवल समझाने में ही सुखद है..अर्थात यह केवल अनुभूति का विषय है..!
इस "नाम" की महिमा का कहाँ तक वर्णन किया जाय..स्वमेव भगवान् श्री रामचन्द्रजी इसका गुण-गान नहीं कर सके..!!
भगवान श्री रामचन्द्रजी ने तो केवल एक गौतम-ऋषि की पत्नी अहिल्या का ही अपने चरण-राज से उद्वार किया था..जबकि परात्मा के पावन "नाम" को जान कर सहस्रों लोगो की कुमति सुधर गयी..!
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विचार करने की बात है..परमात्मा का वक् कौन सा नाम है..जो सदैव विद्यमान रहता है..?
वह एक "स्पंदन" है..जो न तो जन्मता है और न ही मरता है..अपितु वह सभी के जन्म और मरण का काराण है..!
तभी तो कहा गया है कि....
"कलियुग केवल नाम अधारा..सुमिरि सुमिरि नर उतरहि पारा..!
नहि कली कर्म न भगति विवेकू..राम नाम अवलंबन एकू..!!
***अर्थात.इस घोर .कलुय्ग में केवल परमात्मा के नाम का ही एक मात्र सहारा है..जिसका सुमिरण करते-करते मानव भव सागर से पाँव हो जाता है.. यह "नाम" ही एक मात्र अवलम्ब है..!यह नाम केवल मानव ही जान सकता है..और इसका उदघाटन समय के तत्वदर्शी महान-पुरुष द्वारा..एक सच्चे जिज्ञासु के ह्रदय में कराया जाता है..!
इस लिए अपना कल्याण चाहने वाले मानव को समय के तत्त्व दर्शी महान पुरुष की खोज करके निर्मल और समर्पण भाव से इस नाम का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए...!