MANAV DHARM

MANAV  DHARM

Monday, March 19, 2012

मनुष्य का जीवन प्रभु कि अहेतुक कृपा से मिलता है..!

मनुष्य का जीवन प्रभु कि अहेतुक कृपा से मिलता है..!
इस जीवन कि महानता यह है कि..क्षर..अक्षर..और उत्तम यह तीनो तत्व यहाँ इस शरीर में समाये हुए है...!
क्षर वह है..जो यह पञ्च भौतिक शरीर कि रचना में लगा है और नाशवान है..!
अक्षर वह है..जो इस पञ्च भौतिक शरीर को जीवंत रखे हुए है..और जड़-चेतन रूपी ग्रंथि से बंधा हुआ है..!
उत्तम..वह है..जो..क्षर और अक्षर दोनों में होते हुए भी..इससे परे ..निर्द्वंद..निर्लिप्त और निराकार-निष्प्रभ है..केवल..."परमानंदमय" है..!..यहि सबका आश्रय..और सभी उसके आश्रित है..!
***धन्य है..हम सभी  मानव..जिन्हें..यह मानव शरीर मिला है..और भगवद-कृपा से सच्चे तत्वदर्शी गुरु का सानिध्य प्राप्त है..!!
******ॐ श्री सदगुरु चरण कमलेभ्यो नमः........!!!!!!!!

Tuesday, March 13, 2012

जीवां का सार-तत्व

शब्दों के आडम्बर में पड़ कर बहुत सारे लोग दिग्भ्रमि हो जाते है..सन्मार्ग से भटक जाते है..!
जो वास्तु सिर्फ और सिर्फ "अनुभव" में आती है..उसकी व्याख्या शब्दों में नहीं हो सकती..मात्र 'संकेत" से उसका अभिप्राय समझाया जा सकता है..!
इसी लिए कहा गया कि..संतो कि वाणी बहुत अट-पटी होती है..!
सीधे-सपाट शब्दों में अंतर्जगत के अनुभव को व्यक्त नहीं किया जा सकता है..यह ऐसा अनुभव है..जो गूंगे के मुंह में स्वाद की तरह है..!
"आनंद" न तो कोई वस्तु है..और न ही कोई रूप..यह सिर्फ एक "अनुभूति" है..
भौति शरीर में जैसे खट्टे-मीठे स्वाद और कड़वे-मीठे शब्दों आदि का आनंद और क्षोभ होता है..और एस आनंद और क्षोभ को केवल मनः-स्थित के अनुसार अनुभव किया जता है..वैसे ही इस द्वन्द से परे होकर अंतर्जगत में निर्द्वंद और इन्द्रियातीत-परमात्म-तत्व की अनुभूति सूक्ष्म-चेतना द्वारा एक साधक-योगी करता है..!
यही "अनुभूति" जीवां का सार-तत्व है.."ध्येय-वस्तु" है..!