मनुष्य योनि में जन्म प्रभु की अहेतुक कृपा का फल है..!
यह शरीर ही परमात्मा की प्राप्ति का साधन है..!
मनुष्य का ह्रदय ही परमात्मा का पावन मंदिर है..!
इसीलिए सभी महान-पुरुषो ने अपने ह्रदय-मंदिर में ही परमात्मा का ध्यान किया..!
इस शरीर में चारो वेदों के तत्त्व समाये हुए है..!
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?मैंने नर तन दिया तुमको जिसके लिए....
तुमने उसको भुलाया तो मै क्या करू..मै क्या करू..??
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वेद रचना किया ज्ञान के हेतु मै..
मौके मौके पर आकर बताता रहा...
धर्मं-ग्रंथो में संतो का अनुभव भरा...
गीत मजनू के गाये तो..मै क्या करू...??
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मन मंदिर में है ज्योति देखा नहीं..?
सर्वदा घी के दिए जलाता रहा..?
बाजा अनहद का बजता तेरी देह में...
तुमने घंटी हिलाई तो ..मै क्या करू..??
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पुत्र अमृत के हो घाट में अमृत भी है..!
ज्ञानि सदगुरु से उसको तू समझ नहीं..?
पी के मदिरा तू मस्ती में पागल रहा..
आज आंसू बहाए तो मै ..क्या करू..??
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चेत लो मानव..समय है यही..!
कृपा सिन्धु आये धराधाम पर...
कृपासिंधु है.."आनंदकंद भगवान्..!
पर्दा आँखों पर छाये तो..मै क्या करू...???
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समय के तत्वदर्शी महान-पुरुष विद्यमान है...!
आवश्यकता है..उन्हें जानने-पहचानने की..!
जैसे सूरज को हम सूरज ही कहते है..बाकी ब्रह्माण्ड में और ग्रहों को हम सूरज नहीं कह सकते....क्योकि..सूरज खुद-बी-खुद चमकता है...वैसे है...ज्ञान के संवाहक-गुरु भी अपने ज्ञान-ज्योति के खुद-बी-खुद प्र्ताकाषित होते है..और दूसरो को भी ज्ञान देकर उन्हें भी ज्ञानालोक से प्रकाशित कर देते है..!
****इस लिए..हे मानव..!
उठो..!
जागो..!
अपने जीवन-लख्य पर तब तक चलते चलो...जब तक यह प्राप्त न हो जाय..!
***ॐ श्री गुरुवे नमः....!!!!
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