MANAV DHARM

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Tuesday, February 23, 2016

उत्तम स्वभाव वाले पुरुष

"कह रहीम उत्तम प्रकृति  का करी सकत कुसंग..!
चन्दन विष व्यापत नहीं लिपटे रहत भुजंग..!!
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भाव स्पष्ट है..
जो उत्तम स्वभाव वाले पुरुष है वह कभी भी कुसंगति(बुरी संगति) नहीं कर सकते..वैसे ही जैसे..विषधर सर्पो के चन्दन के पेड़ में लिपटे रहने पर भी चन्दन में उसका विष प्रवेश नहीं कर पाटा..!
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तुलसीदासजी कहते है...
"विधिवास सूजन कुसंगति परही.! .फनि मनि गन सैम निज गुन अनुसरहीं..!
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अर्थात...यदि देव योग से सज्जन (उत्तम प्रकृति के) पुरुष कुसंगति में पद जाते है तब ऐसी दशा में वह अपने गुण (स्वभाव) का अनुशरण(धर्म की रक्षा) वैसे ही करते है ..जैसे की मणिधर सर्प अपने मणि की रक्षा करता रहता है..!
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