मानव जीवन की सार्थकता इसी में है..कि ..हम अपने सत्कर्मो से इहलोक और परलोक दोनों को संवार ले..!
यह भौतिक जगत में ज्ञान-रथ पर आरूढ़ होकर निर्लिप्त-भाव से सारे मानवोचित कर्मो को करते हुए संसार-सागर में तरते रहना और नततः इस पञ्च-भौतिक शरीर में समाई हुयी चेतना-शक्ति से परम-चैतन्यता की स्थिति में चैतन्य-महाप्रभु ..परम-पिता-परमेश्वर में लीन हो जाना ही मानव-जीवन का परम-ध्येय है..!!
यह भौतिक जगत में ज्ञान-रथ पर आरूढ़ होकर निर्लिप्त-भाव से सारे मानवोचित कर्मो को करते हुए संसार-सागर में तरते रहना और नततः इस पञ्च-भौतिक शरीर में समाई हुयी चेतना-शक्ति से परम-चैतन्यता की स्थिति में चैतन्य-महाप्रभु ..परम-पिता-परमेश्वर में लीन हो जाना ही मानव-जीवन का परम-ध्येय है..!!
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