कुछ रोचक जानकारिया जो भक्तिमार्ग को दृढ करती है ___
रामकृष्ण परमहंस के गुरू कौन ?
सारा विश्व जानता है कि विवेकानंद के गुरू रामकृष्ण परमहंस थे । 18 फरवरी सन् 1836 को पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के गाव कामारपुकर मेँ एक निर्धन ब्राम्हण परिवार मेँ जन्म लिया , जिसका नाम रखा गया गदाधर । यही बालक आगे चलकर पुरी दुनिया मेँ रामकृष्ण परमहंस के नाम से जाना गया । बहुत कम लोगो को यह जानकारी है कि गदाधर को रामकृष्ण बनाकर उसे परम की स्थिति तक पहुचाने वाले उनके गुरू हरियाणा की शहर कैथल के समीप एक गाव की पावन भुमि के बाबा तोतापुरी जी महाराज थे, जिन्होने सन् 1865 मेँ अव्देत वेदांत की शिच्छा-दिच्छा देकर अपना शिष्य बनाया और उसे नाम दिया रामकृष्ण ।
प्रमाण मेँ आता है कि एक बार जग्गनाथ पुरी तथा गंगा सागर की यात्रा करके बाबा तोतापुरी जी महाराज गंगा के किनारे-किनारे लौटते समय सन् 1865 के प्रारंभ मेँ कोलकत्ता से चार मील दुर स्थित दिच्छिणेश्वर मंदिर पहुचे और उन्होने काली माता के पुजारी गदाधर की व्यथा सुनी । गदाधर ने उनसे विनती करते हुए कहा कि ध्यान से मेरा कोई भी प्रयत्न सफल नही है तब बाबा तोतापुरी जी ने गदाधर को चारो क्रियाओ का ग्यान कराकर कहा कि एकाग्रता के लिए मस्तक के केन्द्र बिन्दु मेँ अपने मन को एकाग्र करो और बाबा तोतापुरी ने निकट पडे एक शीशे के टुकडे को गदाधर की भृकुटि के मध्य भाग मेँ चुभोते हुए कहा कि यहा ध्यान केन्द्रित करो उस समय गदाधर के मस्तक से खुन बहने लगा उसको निर्विकल्प समाधि लग गयी । गदाधर लगातार तीन दिन तक समाधि की अवस्था मेँ रहने के पश्चात समाधि खुलने पर गदाधर ने बाबा तोतापुरी से अपना अनुभव बताते हुए कहा कि समाधि की अवस्था मेँ मैने उस परमतत्व के दर्शन कर लिए है जिसकी मुझे वर्षो से चाह थी ।
तोतापुरी जी महाराज जिन्होने कलकत्ता के एक साधारण पुजारी को सन्यास की एवं चारो क्रियाओ की दिच्छा देकर अपना शिष्य बनाया और रामकृष्ण नाम देकर परमहंस की स्थिति तक पहुचा दिया । तोतापुरी जी महाराज जी ने आनंदपुरी जी महाराज को, उसके बाद आनंदपुरी जी महाराज ने अव्देतानंद जी महाराज को, उसके बाद अव्देतानंद जी महाराज ने स्वरूपानंद जी को, उसके बाद स्वरूपानंद जी महाराज ने परमसंत सद्गुरूदेव श्री हंस जी महाराज को एवं उसके बाद श्री हंस जी महाराज ने सद्गुरूदेव श्री सतपाल जी महाराज ( Present perfect spiritual master जो इस समय गुरूगद्दी पर है ) को गुरूगद्दी प्रदान किया ।
रामकृष्ण परमहंस के गुरू कौन ?
सारा विश्व जानता है कि विवेकानंद के गुरू रामकृष्ण परमहंस थे । 18 फरवरी सन् 1836 को पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के गाव कामारपुकर मेँ एक निर्धन ब्राम्हण परिवार मेँ जन्म लिया , जिसका नाम रखा गया गदाधर । यही बालक आगे चलकर पुरी दुनिया मेँ रामकृष्ण परमहंस के नाम से जाना गया । बहुत कम लोगो को यह जानकारी है कि गदाधर को रामकृष्ण बनाकर उसे परम की स्थिति तक पहुचाने वाले उनके गुरू हरियाणा की शहर कैथल के समीप एक गाव की पावन भुमि के बाबा तोतापुरी जी महाराज थे, जिन्होने सन् 1865 मेँ अव्देत वेदांत की शिच्छा-दिच्छा देकर अपना शिष्य बनाया और उसे नाम दिया रामकृष्ण ।
प्रमाण मेँ आता है कि एक बार जग्गनाथ पुरी तथा गंगा सागर की यात्रा करके बाबा तोतापुरी जी महाराज गंगा के किनारे-किनारे लौटते समय सन् 1865 के प्रारंभ मेँ कोलकत्ता से चार मील दुर स्थित दिच्छिणेश्वर मंदिर पहुचे और उन्होने काली माता के पुजारी गदाधर की व्यथा सुनी । गदाधर ने उनसे विनती करते हुए कहा कि ध्यान से मेरा कोई भी प्रयत्न सफल नही है तब बाबा तोतापुरी जी ने गदाधर को चारो क्रियाओ का ग्यान कराकर कहा कि एकाग्रता के लिए मस्तक के केन्द्र बिन्दु मेँ अपने मन को एकाग्र करो और बाबा तोतापुरी ने निकट पडे एक शीशे के टुकडे को गदाधर की भृकुटि के मध्य भाग मेँ चुभोते हुए कहा कि यहा ध्यान केन्द्रित करो उस समय गदाधर के मस्तक से खुन बहने लगा उसको निर्विकल्प समाधि लग गयी । गदाधर लगातार तीन दिन तक समाधि की अवस्था मेँ रहने के पश्चात समाधि खुलने पर गदाधर ने बाबा तोतापुरी से अपना अनुभव बताते हुए कहा कि समाधि की अवस्था मेँ मैने उस परमतत्व के दर्शन कर लिए है जिसकी मुझे वर्षो से चाह थी ।
तोतापुरी जी महाराज जिन्होने कलकत्ता के एक साधारण पुजारी को सन्यास की एवं चारो क्रियाओ की दिच्छा देकर अपना शिष्य बनाया और रामकृष्ण नाम देकर परमहंस की स्थिति तक पहुचा दिया । तोतापुरी जी महाराज जी ने आनंदपुरी जी महाराज को, उसके बाद आनंदपुरी जी महाराज ने अव्देतानंद जी महाराज को, उसके बाद अव्देतानंद जी महाराज ने स्वरूपानंद जी को, उसके बाद स्वरूपानंद जी महाराज ने परमसंत सद्गुरूदेव श्री हंस जी महाराज को एवं उसके बाद श्री हंस जी महाराज ने सद्गुरूदेव श्री सतपाल जी महाराज ( Present perfect spiritual master जो इस समय गुरूगद्दी पर है ) को गुरूगद्दी प्रदान किया ।