MANAV DHARM

MANAV  DHARM

Wednesday, June 8, 2011

"नर सहस्र मंह सुनहु पुरारी..कोई एक होइ धर्म व्रत धारी..!

राम चरित मानस में संत-शिरोमणि तुलसीदासजी..शिव-पारवती संबाद में कहते है ...कि मां पारवती शिव जी से कहती है..
"नर सहस्र मंह सुनहु पुरारी..कोई एक होइ धर्म व्रत धारी..!
धर्मशील कोटिक मंह कोई..विषय बिमुख विराग रत होइ..!
कोटि विरक्त मध्य श्रुति कहहि..सम्यक ज्ञान सकुल कोऊ लहही..!
ज्ञानवंत कोटिक मंह कोऊ..जीवन मुक्त सकुल कग सोऊ..!
तिन्ह सहस्र महु सब सुख खानी..दुर्लभ ब्रह्म लीन विज्ञानी..!
धर्मशील विरक्त अरु ज्ञानी..जीवन मुक्त ब्रह्मपर प्रानी..!
सब ते सो दुर्लभ सुर राया..राम भगति रत गत मद माया..!
*****आशय अत्यंत स्पष्ट है...
करोडो मनुष्यों में कोई एक धर्म-व्रत-धारी होता है..!
ऐसे करोडो धर्मशील मनुष्यों में कोई एक विरक्त-वैराग्यवान होता है..!
ऐसे करोडो विरक्त-वैरागी-पुरुषो में कोई एक सम्यक-ज्ञान-दृष्टि वाला होता है..!
ऐसे करोडो ज्ञानवंत मनुष्यों में कोई एक जीवनमुक्त -योगी-पुरुष संसार में मिलाता है..!
ऐसे करोडो जीवन मुक्त पुरुषो में कोई एक विरला और दुर्लभ ब्रह्मलीन -विज्ञानी-पुरुष होता है..!
इन समस्त धर्मशील..विरक्त..ज्ञानी..जीवनमुक्त औत ब्रह्मलीन पुरुषो में कोई एक सबमे अति दुर्लभ मनुष्य जो होता है..वह हे देवाधिदेव-शंकर भगवान..सुनिए..वह सभी माया-मोह से परे रहते हुए प्रभु श्री रामचन्द्रजी की भक्ति करने वाला है...!
*****
तात्पर्य यह है कि....जो परम-प्रभु-परमेश्वर को तत्त्व से जानकर उन की निर्मल-भक्ति करने वाला पुरुष है..वह..अत्यंत दुर्लभ है..!
***जय देव जय जय सदगुरुदेव ..जय देव.....!!!!

No comments:

Post a Comment