युगों-युगों से गुरु की महिमा का वर्णन सद्ग्रंथो में सत्पुरुषो द्वारा किया गया है..!
....जो असत्य से सत्य की ओर..अन्धकार से प्रकाश की ओर..मृत्यु से अमरत्व की ओर ले जाते है..
वही सच्चे-तत्वदर्शी गुरु है..!
"सत्य" क्या है..?
जो कभी परिवर्तित नहीं होता..सदैव-सर्वदा-सर्व-काल ने एक रस..सनातन रहता है..वही "सत्य" है..!... "असत्य" क्या है..?
जिसका न कभी कोई अस्तित्व था..न है..और न रहेगा..जो अस्तित्वहीन..स्वप्नवत और अप्रत्यक्ष-परोक्ष-अप्रमाणित-मायामय है..वही "असत्य है..!
"अन्धकार" क्या है..?
प्रकाश का न होना ही अन्धकार है..अन्धकार कोई "वास्तु" नहीं..बल्कि..जो चक्षुओ के बंद करने से अनुभव में आता है..और जहा प्रकाश विद्यमान नहीं रहता ..वही अन्धकार है..!दुसरे शब्दों में.."ज्ञान"(प्रकाश) का न होना ही "अन्धकार"(अज्ञान) है..!
"प्रकाश" क्या है..?
जहा सर्वत्र..सूर्य की प्रखर-ज्योति..चक्षुओ से दी दिखलाई पड़ती है..जहां चन्द्रमा की ज्योति और अग्नि का अस्तित्व है..वही प्रकाश इन चर्म-चक्षुओ से अनुभूत होता है..! दुसरे शब्दों में प्रकाश की अनुभूति ही ज्ञान है..!
"मृत्यु" क्या है..?
इस मंच-भौतिक शरीर से पान-अपान..(श्वांस-प्रश्वांस) की क्रिया का सर्वदा के लिए समापन ही "मृत्यु" है..!
"अमरत्व" क्या है..?
इस मंच-भौतिक शरीर में चाल रही श्वांस-प्रश्वांस की द्वंदात्मक-क्रिया को..तत्वदर्शी-गुरु के सानिध्य में तत्त्व-ज्ञान प्राप्त करके ..जो साधक..अद्वेत की स्थिति में पहुच कर सामान कर लेता है..वह..अपने "प्राणों" के वश में करके..चिरंजीवी हो जाता है..यहि "अमरत्व" की स्थिति है..!
****धन्य है..हम भारतवासी..जहा पर ऐसी तत्त्व साधना सुलभ है..ऐसे तत्वदर्शी सुलभ है..जिनकी कृपा से जीव अमरत्व को प्राप्त हो जाता है..!
....जो असत्य से सत्य की ओर..अन्धकार से प्रकाश की ओर..मृत्यु से अमरत्व की ओर ले जाते है..
वही सच्चे-तत्वदर्शी गुरु है..!
"सत्य" क्या है..?
जो कभी परिवर्तित नहीं होता..सदैव-सर्वदा-सर्व-काल ने एक रस..सनातन रहता है..वही "सत्य" है..!... "असत्य" क्या है..?
जिसका न कभी कोई अस्तित्व था..न है..और न रहेगा..जो अस्तित्वहीन..स्वप्नवत और अप्रत्यक्ष-परोक्ष-अप्रमाणित-मा
"अन्धकार" क्या है..?
प्रकाश का न होना ही अन्धकार है..अन्धकार कोई "वास्तु" नहीं..बल्कि..जो चक्षुओ के बंद करने से अनुभव में आता है..और जहा प्रकाश विद्यमान नहीं रहता ..वही अन्धकार है..!दुसरे शब्दों में.."ज्ञान"(प्रकाश) का न होना ही "अन्धकार"(अज्ञान) है..!
"प्रकाश" क्या है..?
जहा सर्वत्र..सूर्य की प्रखर-ज्योति..चक्षुओ से दी दिखलाई पड़ती है..जहां चन्द्रमा की ज्योति और अग्नि का अस्तित्व है..वही प्रकाश इन चर्म-चक्षुओ से अनुभूत होता है..! दुसरे शब्दों में प्रकाश की अनुभूति ही ज्ञान है..!
"मृत्यु" क्या है..?
इस मंच-भौतिक शरीर से पान-अपान..(श्वांस-प्रश्वांस) की क्रिया का सर्वदा के लिए समापन ही "मृत्यु" है..!
"अमरत्व" क्या है..?
इस मंच-भौतिक शरीर में चाल रही श्वांस-प्रश्वांस की द्वंदात्मक-क्रिया को..तत्वदर्शी-गुरु के सानिध्य में तत्त्व-ज्ञान प्राप्त करके ..जो साधक..अद्वेत की स्थिति में पहुच कर सामान कर लेता है..वह..अपने "प्राणों" के वश में करके..चिरंजीवी हो जाता है..यहि "अमरत्व" की स्थिति है..!
****धन्य है..हम भारतवासी..जहा पर ऐसी तत्त्व साधना सुलभ है..ऐसे तत्वदर्शी सुलभ है..जिनकी कृपा से जीव अमरत्व को प्राप्त हो जाता है..!
No comments:
Post a Comment