MANAV DHARM

MANAV  DHARM

Tuesday, December 27, 2011

अनंत में जितना भी जोड़ा या घटाया जाय..वह अनंत ही रहता है..!

अनंत में जितना भी जोड़ा या घटाया जाय..वह अनंत ही रहता है..!
जैसे महासागर का जल एक घड़े के बराबर पानी निकाल लेने से कम नहीं हो जाता .और महासागर का अथाह स्वरूप अक्षुन्य रहता है.. .वैसे ही...सच्चिदानंद-घन ..आनंद-स्वरूप परमात्मा ..अनंत--अनादि--अचिन्त्य-अद्भुत-आत्म-भू..अखिलेश....सदैव--सर्वदा एकरस और अप्रतिम ..सर्वत्र-समान रूप में विद्यमान है..!!!
ऐसा कोई समय..स्थान..नहीं है..जहां वह व्यापक न हो..!
वह केवल च्निन्तन और अनुभव में आने वाले है..उनका साक्षात्कार केवल अन्तः करना में होता है..
वन चर्म०चक्शुओ का विषय नहीं है..सिर्फ दिव्य नेत्र से ही सच्चे साधक-भक्त उनका दीदार कर सकते है..!
दिव्य-नेत्र की प्राप्ति समय के तत्वदर्शी-गुरु से होती है..!
यही जीवन का ध्येय है कि..सच्चे तत्वदर्शी गुरु की खोज करके..सर्वव्यापक..सर्वशक्तिमान परमेश्वर को अपने अन्तः करना में प्राप्त करके अपना मानव जीवन सफल करे..!!

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