MANAV DHARM

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Thursday, December 29, 2011

बिंदु--बिंदु से सिन्धु बना है..बिंदु--बिंदु से ये बादल...

बिंदु--बिंदु से सिन्धु बना है..बिंदु--बिंदु से ये बादल...
बिंदु--बिंदु से निर्झर झरता..बहता सर--सरिता का जल....!!!
**गौर करने की बात है..आखिर यह बिंदु (. )  क्या है ...!
यह (.) ही अक्षर-ब्रह्म है..!
जो कभी क्षरित नहीं होता..सदैव अक्षुन्य..अजन्मा और अनंत है..एकरस है..निर्लिप्त-निराकार-निरंजन-निर्मम-निर्मोही-निर्विकल्प..है..वही.."अक्षर" है..एकाक्षर है..एकरस है..!
जैसे एक क्षुद्र बीज में विशाल वृक्ष समाया हुआ है..वैसे ही..इस विन्दु (.) में..सर्व-शक्तिमान-सर्वज्ञ-सनातन तत्व समाया हुआ है..!
यहि बीज-रूप--विन्दु-रूप परमात्मा ..बर्गो-ज्योति के रूप में.. हर मनाव के ह्रदय में स्थित है..!
यह सिर्फ ध्यान-योग से ही प्रकट..विक्सित और व्यापक होते है..!
ध्यान करने की विधि-क्रिया योग..तत्वदर्शी गुरु से ही सुलभ होती है..!
ध्यान भृकुटी  के मध्य ..आज्ञा--चक्र से होता है..जो मानव शरीर का पवित्रतम..अक्षत..स्थान है..!
ध्यान०योग से मन-इन्द्रियों और शरीर का अतिक्रमण करते हुए..जो भक्त इन्रियातीत परमात्मा को प्राप्त कर लेता है..उसका जीवन धन्य हो जाता है..!!!!
यहि मानव शरीर..जीवन और कर्म की महिमा है..! !

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