"सन्मार्ग" पर चलने से ही जीवन का यथार्थ-तत्व-वोध प्राप्त हो सकता है..!
संत शिरोमणि तुलसीदासजी कहते है...
"अति हरि कृपा जाहि पर होई..पाँव देहि यह मारग सोई..!"
अर्थात..परमात्मा की अतीव कृपा जिस मानव पर होती है..वही "सन्मार्ग" पर चलता है..!
सच्चे ह्रदय और समर्पण भाव से जो गुरु-भक्ति करता है..उसी को भगवद-कृपा प्राप्त होती है..!
गुरु ही ब्रह्मा है..गुरु ही विष्णु है..गुरु ही देवाधिदेव महेश है..गुरु ही साक्षात परम-ब्रह्म है..ऐसे श्री गुरुदेव महाराज जी को बारम्बार नमस्कार है..!
***ॐ श्री सदगुरु चरण कमलेभ्यो नमः..........!!!!
"ज्ञानेन मुक्तिः.."
ज्ञान से ही मुक्ति है...!
जैसे यदि किसी को नदी में तैरना न आता हो तो..नौका के न रहने पर वह नदी से पार नहीं हो सकता..और यदि वह नदी में चलाकर पार होना चाहे तो..उसका डूब कर मरना निश्चित है...ठीक ऐसे ही...इस संसार-सागर से ..दुखो के समुद्र से..जन्म-मरना के चक्र से..छूटने ..मुक्त होने का एक मात्र साधन.."ज्ञान" है...!
इसीलिए महान-पुरुषो ने कहा..."ज्ञानेन मुक्तिः ....!
जर्रे-जर्रे में रमण करने वाली.."शाश्वत-शक्ति" को अपनी चेतना कि आँखों से..चेतना में स्थित और स्थिर होकर ..इसी चेतना के शाश्वर-रूप-स्वरूप में जो लीन हो जाता है..वही.."ज्ञानी"..और "मुक्तात्मा" है..!
इस "क्रिया-विधि" को जानना और इसका साधन करके इसको अपने जीवन में ..व्हावाहारिक-रूप से अपने कर्म में उतारना ही.."ज्ञान" है..!
इसी को "आत्म-ज्ञान".."तत्व-ज्ञान' कहा गया है..!
यहि श्रीमद भगवद गीता का सार..और रहस्य है..!
समय के तत्वदर्शी-गुरु द्वारा यह ज्ञान..एक सच्चे-जिज्ञासु को प्रदान किया जता है..!
इस लिए..जीवन का वास्तविक-ध्येय..तत्वदर्शी गुरु कि खोज करके इस दुर्लभ "ज्ञान" को प्राप्त करना और इसका साधन करके भव-सागर से पार होना है..!
:ज्ञान" क्या है..?
"सत्य-सनातन" तत्व को तत्वतः जानना ही "ज्ञान" है..!
जो बीते क्षणों में ..अर्थात पूर्व में जैसे था..वैसे ही वर्त्तमान में है..और उसी रूप में भविष्य में रहेगा..और जो न जन्मता है और ना ही मृत्यु को प्राप्त होता है..जो अनादी..अनंत और अक्षर-अच्युत है..अपरिवर्तनीय-अगोचर और शाश्वत-नित्य है...वही.."सनातन-तत्व" है..!
इसका ज्ञान सर्व-सिद्धि दायक और जीवन-मुक्त करने वाला है..!
इसका जो ज्ञाता है वही "तत्वदर्शी" है..!
इसका ज्ञान ही "तत्वदर्शिता" है..!
समय के तत्वदर्शी-गुरु कि कृपा से यह ज्ञान भक्त के हृदय में प्रकट होता है..!
इस ज्ञान कि साधना ही "तत्व-साधना " है..!
तत्व से अपने-आप को जानना ..पहचानना और अपने-आप में स्थिर और स्थित होना ही मानव-जीवन का ध्येय है..!
आत्म-तत्व का परमात्म-तत्व में एकीकरण ही परम-गति ..अर्थात निर्वाण-पद है..!
इसी को "सायुज्य-मुक्ति" कहते है..!
इस निर्वाण-पद को प्राप्त करके जीवात्मा आवागमन-चक्र से मुक्त हो जाता है..!
****ॐ श्री सदगुरु चरण कमलेभ्यो नमः....!!!
"ध्यान" एक ऐसा साधन है..जिससे तन और मन दोनों ही तरोताजा रहते है..!
इस शरीर को तरोताजा रखने वाली शक्ति (ऊर्जा)..का प्रत्यक्ष-ज्ञान "ध्यान" से ही होता है..!
ध्यान के माध्यम से दैहिक..दैविक और भौतिक तीनो तापो का भी नाश हो जाता है..!
"अष्टांग-योग" में ध्यान का स्थान सातवे-स्तर पर है..!
यम..नियम..आसन..प्राणायाम..प्रत्याहार..धरना..ध्यान और समाधि..यह आठ स्तर है..!
निरंतर ध्यान करते रहने से यह अभ्यास इतना प्रखर हो जाता है कि..तन और नम दोनों ही छूट जाते है..और स्वांश-प्रस्वांश कि क्रिया में समानता स्थापित हो जाती है..!
इसी को "समाधि: कहते है..!
यह तत्वदर्शी-गुरु की कृपा और निरंतर अभ्यास-साधना से सिद्ध होने वाला योग है..!
अष्टांग-योग की क्रिया-विधि का ज्ञान सद्गुरु से प्राप्त होता है..!
जिस साधक को इस योग की सिद्धि प्राप्त हो जाती है..उसका जीवन कीचड में खिले हुए कमल की तरह हो जाता है..!
***आईये..अपने जीवन को इस योग-साधना से सार्थक करे..!
"जीवन धन्य हुआ..जो यह मानव-शरीर मिला..और प्रभु के साकार-सगुण लोक में पदार्पण किये..!
बस थोड़ी-सी समझदारी दिखानी है.. जीवन के वास्तविक उद्देश्य को समझने के लिए..!
समझारी बस इतनी ही है..कि...
इस शरीर में "मन" को साधना है..जो बेलगाम-घोड़े कि तरह हमेशा दौड़ता रहता है..!
और इस सगुण-साकार-लोक में मुक्तिदाता गुरु को साधना है..जो सर्वत्र-सुलभ है..!
तभी कहा गया है कि...
एके साधे सब सधे..सब साधे सब जाय...रहिमन मुलाहि सींचिये फूलहि फलहि अघाय...!!
भाव स्पष्ट है..शरीर में इन्द्रियों के राजा मन को..और संसार में मुक्तिदाता गुरु को साधना है..
सरीर एक है और संसार भी एक ही है..!
यहाँ तीसरा जो है..वह साक्षी के रूप में है..वह है प्रभु का "नाम" जो सर्वत्र एक समान समाया हुआ है..!
यह "नाम" ही सब बीजो का बीज है..!
यह बीज-रूप में शरीर में है..और मूर्त-रूप में सगुन-सृष्टि में दैदीप्यमान है..आलोकित है..!
यह नाम ही सब बंधनों को काटने वाला..आवागमन के चक्र से मुक्त करने वाला है..!
इसी नाम का तव-वोध मुक्तिदाता-सद्गुरु द्वारा जिज्ञासु को कराया जाता है..!
*****आवश्यकता है..जीवन के वास्तविक-ध्येय को जानने और प्राप्त करने की..!
लख चौरासी भरम दियो मानुष तन पायो ..
कह नानक नाम संभाल..सो दिन नेड़े आयो...!!
विचार करने कि बात है..वह कौन सा नाम है जिसको संभालने कि बात नानकदेवजी कहते है..?
यह नाम है..
"आदि सच..जुगादि सच..नानक है भी सच और होसी भी सच...!!
जो सृष्टि से पूर्व और युगों-युगों से सत्य है..था और रहेगा..वही "आदिनाम".."सतनाम".."अक्षर-ब्रह्म" और "पावन-नाम"..ही "सत्य" है..!
कबीर साहेब कहते है...
चिंता है सतनाम की..और न चितवे दास..जो चिंता है नाम बिन..सोई काल कि फांस..!!
यह "नाम" ही चिन्तन करने योग्य है..बिना नाम के चिंतन किये सारे कार्य-कलाप काल की फांस की तरह है..!
नाम लिया तिन्ह सब लिया..सकल वेद का भेद..बिना नाम नरके पडा..पढ़ता चारो वेद..!
इस "नाम" को जान लेने मात्र से सारे वेद शास्त्रों का मर्म स्वतः प्रकट हो जाते है..इस नाम के बिना वेदों का अध्ययन भी नरक भोगने के सामान है..!
इसी नाम का सुमिरण करके पवन-पुत्र हनुमानजी ने अपने आराध्य श्री रामचन्द्रजी को अपने वश में कर लिया था..!
सुमिरि पवन सूत पावन नामु..अपने वश करि राखे रामू....!!
इसीलिए इस नाम की वंदना करते हुए संत शिरोमणि तुलसीदास जी कहते है...
वन्दौ नाम राम रघुवर को..हेतु क्रिसानी भानु दिनकर को....!!
***कहने का अभिप्राय यह है..की..यह प्रभु का "नाम" ही..प्रभु से मिलाने वाला और सारे सुखो को देने वाला है..!
तभी तो कहा है की...
जाकी गांठी नाम है..ताकि गांठी है सब सिद्धि...हाँथ जोड़े कड़ी है आठो सिद्धि और नवो निधि.....!!!!
जिसके पास यह "नाम" है..उसके पास स्सारी सिद्धिया और निधिया है..!
मीराबाई कहती है.....
पायो जी मै तो नाम रतन धन पायो...
वास्तु अमोलन दीन्ह मेरे सदगुरु कर कृपा अपनायो...!
चोर ना लेवे..खर्च ना होवे..दिन दिन बढ़त सवायो..!
जनम जनम की पूंजी पायी..जग का सभी गवांयो...!
सत की नाव खेवनिया सदगुरु भव सागर तर आयो..!
मीरा के प्रभु गिरधर नागर..हर्ष हर्ष जस गायो....!!!!
**यह "नाम" समय के तत्वदर्शी गुरु से प्राप्त होता है...!
ऐसे तत्वदर्शी गुरु का मिलना ही "नाम" अर्थात.."प्रभु" का मिलना है..!
इसलिए मानव जीवन का ध्येय सच्चे तत्वदर्शी गुरु की खोज करके इस "पावन-नाम" को प्राप्त करना है..!