MANAV DHARM

MANAV  DHARM

Wednesday, February 8, 2012

"अष्टांग-योग" में ध्यान का स्थान सातवे-स्तर पर है..!

"ध्यान" एक ऐसा साधन है..जिससे तन और मन दोनों ही तरोताजा रहते है..!
इस शरीर को तरोताजा रखने वाली शक्ति (ऊर्जा)..का प्रत्यक्ष-ज्ञान "ध्यान" से ही होता है..!
ध्यान के माध्यम से दैहिक..दैविक और भौतिक तीनो तापो का भी नाश हो जाता है..!
"अष्टांग-योग" में ध्यान का स्थान सातवे-स्तर पर है..!
यम..नियम..आसन..प्राणायाम..प्रत्याहार..धरना..ध्यान और समाधि..यह आठ स्तर है..!
निरंतर ध्यान करते रहने से यह अभ्यास इतना प्रखर हो जाता है कि..तन और नम दोनों ही छूट जाते है..और स्वांश-प्रस्वांश कि क्रिया में समानता स्थापित हो जाती है..!
इसी को "समाधि: कहते है..!
यह तत्वदर्शी-गुरु की कृपा और निरंतर अभ्यास-साधना से सिद्ध होने वाला योग है..!
अष्टांग-योग की क्रिया-विधि का ज्ञान सद्गुरु से प्राप्त होता है..!
जिस साधक को इस योग की सिद्धि प्राप्त हो जाती है..उसका जीवन कीचड में खिले हुए कमल की तरह हो जाता है..!
***आईये..अपने जीवन को इस योग-साधना से सार्थक करे..!

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