लख चौरासी भरम दियो मानुष तन पायो ..
कह नानक नाम संभाल..सो दिन नेड़े आयो...!!
विचार करने कि बात है..वह कौन सा नाम है जिसको संभालने कि बात नानकदेवजी कहते है..?
यह नाम है..
"आदि सच..जुगादि सच..नानक है भी सच और होसी भी सच...!!
जो सृष्टि से पूर्व और युगों-युगों से सत्य है..था और रहेगा..वही "आदिनाम".."सतनाम".."अक्षर-ब्रह्म" और "पावन-नाम"..ही "सत्य" है..!
कबीर साहेब कहते है...
चिंता है सतनाम की..और न चितवे दास..जो चिंता है नाम बिन..सोई काल कि फांस..!!
यह "नाम" ही चिन्तन करने योग्य है..बिना नाम के चिंतन किये सारे कार्य-कलाप काल की फांस की तरह है..!
नाम लिया तिन्ह सब लिया..सकल वेद का भेद..बिना नाम नरके पडा..पढ़ता चारो वेद..!
इस "नाम" को जान लेने मात्र से सारे वेद शास्त्रों का मर्म स्वतः प्रकट हो जाते है..इस नाम के बिना वेदों का अध्ययन भी नरक भोगने के सामान है..!
इसी नाम का सुमिरण करके पवन-पुत्र हनुमानजी ने अपने आराध्य श्री रामचन्द्रजी को अपने वश में कर लिया था..!
सुमिरि पवन सूत पावन नामु..अपने वश करि राखे रामू....!!
इसीलिए इस नाम की वंदना करते हुए संत शिरोमणि तुलसीदास जी कहते है...
वन्दौ नाम राम रघुवर को..हेतु क्रिसानी भानु दिनकर को....!!
***कहने का अभिप्राय यह है..की..यह प्रभु का "नाम" ही..प्रभु से मिलाने वाला और सारे सुखो को देने वाला है..!
तभी तो कहा है की...
जाकी गांठी नाम है..ताकि गांठी है सब सिद्धि...हाँथ जोड़े कड़ी है आठो सिद्धि और नवो निधि.....!!!!
जिसके पास यह "नाम" है..उसके पास स्सारी सिद्धिया और निधिया है..!
मीराबाई कहती है.....
पायो जी मै तो नाम रतन धन पायो...
वास्तु अमोलन दीन्ह मेरे सदगुरु कर कृपा अपनायो...!
चोर ना लेवे..खर्च ना होवे..दिन दिन बढ़त सवायो..!
जनम जनम की पूंजी पायी..जग का सभी गवांयो...!
सत की नाव खेवनिया सदगुरु भव सागर तर आयो..!
मीरा के प्रभु गिरधर नागर..हर्ष हर्ष जस गायो....!!!!
**यह "नाम" समय के तत्वदर्शी गुरु से प्राप्त होता है...!
ऐसे तत्वदर्शी गुरु का मिलना ही "नाम" अर्थात.."प्रभु" का मिलना है..!
इसलिए मानव जीवन का ध्येय सच्चे तत्वदर्शी गुरु की खोज करके इस "पावन-नाम" को प्राप्त करना है..!
कह नानक नाम संभाल..सो दिन नेड़े आयो...!!
विचार करने कि बात है..वह कौन सा नाम है जिसको संभालने कि बात नानकदेवजी कहते है..?
यह नाम है..
"आदि सच..जुगादि सच..नानक है भी सच और होसी भी सच...!!
जो सृष्टि से पूर्व और युगों-युगों से सत्य है..था और रहेगा..वही "आदिनाम".."सतनाम".."अक्षर-ब्रह्म" और "पावन-नाम"..ही "सत्य" है..!
कबीर साहेब कहते है...
चिंता है सतनाम की..और न चितवे दास..जो चिंता है नाम बिन..सोई काल कि फांस..!!
यह "नाम" ही चिन्तन करने योग्य है..बिना नाम के चिंतन किये सारे कार्य-कलाप काल की फांस की तरह है..!
नाम लिया तिन्ह सब लिया..सकल वेद का भेद..बिना नाम नरके पडा..पढ़ता चारो वेद..!
इस "नाम" को जान लेने मात्र से सारे वेद शास्त्रों का मर्म स्वतः प्रकट हो जाते है..इस नाम के बिना वेदों का अध्ययन भी नरक भोगने के सामान है..!
इसी नाम का सुमिरण करके पवन-पुत्र हनुमानजी ने अपने आराध्य श्री रामचन्द्रजी को अपने वश में कर लिया था..!
सुमिरि पवन सूत पावन नामु..अपने वश करि राखे रामू....!!
इसीलिए इस नाम की वंदना करते हुए संत शिरोमणि तुलसीदास जी कहते है...
वन्दौ नाम राम रघुवर को..हेतु क्रिसानी भानु दिनकर को....!!
***कहने का अभिप्राय यह है..की..यह प्रभु का "नाम" ही..प्रभु से मिलाने वाला और सारे सुखो को देने वाला है..!
तभी तो कहा है की...
जाकी गांठी नाम है..ताकि गांठी है सब सिद्धि...हाँथ जोड़े कड़ी है आठो सिद्धि और नवो निधि.....!!!!
जिसके पास यह "नाम" है..उसके पास स्सारी सिद्धिया और निधिया है..!
मीराबाई कहती है.....
पायो जी मै तो नाम रतन धन पायो...
वास्तु अमोलन दीन्ह मेरे सदगुरु कर कृपा अपनायो...!
चोर ना लेवे..खर्च ना होवे..दिन दिन बढ़त सवायो..!
जनम जनम की पूंजी पायी..जग का सभी गवांयो...!
सत की नाव खेवनिया सदगुरु भव सागर तर आयो..!
मीरा के प्रभु गिरधर नागर..हर्ष हर्ष जस गायो....!!!!
**यह "नाम" समय के तत्वदर्शी गुरु से प्राप्त होता है...!
ऐसे तत्वदर्शी गुरु का मिलना ही "नाम" अर्थात.."प्रभु" का मिलना है..!
इसलिए मानव जीवन का ध्येय सच्चे तत्वदर्शी गुरु की खोज करके इस "पावन-नाम" को प्राप्त करना है..!
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