एके साधे सब सधे..सब साधे सब जाय
"जीवन धन्य हुआ..जो यह मानव-शरीर मिला..और प्रभु के साकार-सगुण लोक में पदार्पण किये..!
बस थोड़ी-सी समझदारी दिखानी है.. जीवन के वास्तविक उद्देश्य को समझने के लिए..!
समझारी बस इतनी ही है..कि...
इस शरीर में "मन" को साधना है..जो बेलगाम-घोड़े कि तरह हमेशा दौड़ता रहता है..!
और इस सगुण-साकार-लोक में मुक्तिदाता गुरु को साधना है..जो सर्वत्र-सुलभ है..!
तभी कहा गया है कि...
एके साधे सब सधे..सब साधे सब जाय...रहिमन मुलाहि सींचिये फूलहि फलहि अघाय...!!
भाव स्पष्ट है..शरीर में इन्द्रियों के राजा मन को..और संसार में मुक्तिदाता गुरु को साधना है..
सरीर एक है और संसार भी एक ही है..!
यहाँ तीसरा जो है..वह साक्षी के रूप में है..वह है प्रभु का "नाम" जो सर्वत्र एक समान समाया हुआ है..!
यह "नाम" ही सब बीजो का बीज है..!
यह बीज-रूप में शरीर में है..और मूर्त-रूप में सगुन-सृष्टि में दैदीप्यमान है..आलोकित है..!
यह नाम ही सब बंधनों को काटने वाला..आवागमन के चक्र से मुक्त करने वाला है..!
इसी नाम का तव-वोध मुक्तिदाता-सद्गुरु द्वारा जिज्ञासु को कराया जाता है..!
*****आवश्यकता है..जीवन के वास्तविक-ध्येय को जानने और प्राप्त करने की..!
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