"शब्द" और "श्रुति"....
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शब्द बिना सूरति अँधेरी..कहो कहा को जाय..!
द्वार ना पावे शब्द का..फिर फिर भटका खाय..!!
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बिना "शब्द" (एकाक्षर-ब्रह्म.) के श्रुति (जीव-मानवीय चेतना ) अंधी है...इतना अंधी है की..शब्द-ब्रह्म-परमेश्वर का द्वार नहीं प्राप्त कर पाती..और बार बार भटकती रहती है..!
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यह शब्द...ही परमेश्वर का पावन-नाम है..जिसे सत-नाम..और एकाक्षर-ब्रह्म के रूप में भी जाना जाता है..!
यही "महामंत्र" है....जिसे देवाधिदेव महादेव जी माता पार्वती के साथ निरंतर जपते रहते है...
जो सभी अमंगलो का समूल नाश करने वाला और सुमंगालो का निवास-धाम है...!
"मंगल भवन अमंगल हारी..उमा सहित जेहि जपत पुरारी...!!
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इसी शब्द-रूप परमेश्वर का ज्ञाम समय के तत्वदर्शी महान-पुरुष से प्राप्त होता है..!
एक सच्चे जिज्ञासु ..प्रभु प्रेमी-भक्त को यह ज्ञान देकर..उसकी सोयी हुयी चेतना को जाग्रत करके श्रुति(चेतना का सुक्ष्म-रूप) को ह्रदय में विद्यमान "शब्द" से जोड़ने का काम समय के तत्वदर्शी गुरु द्वारा ही..कृपापूर्वक किया जाता है..!
इस घोर मायामय संसार में...माया की इतनी विकराल व्यापकता है..की मनुष्य मात्र बहिर्मुखी होकर अपने जीवन का सुख और शांति..भौतिक जगत के पदार्थो में खोजता फिर रहा है..!
नैसर्गिक और चिरस्थायी सुख और संतुष्टि..तो...शब्द-श्रुति के मिलन से ही संभव है..!
...
जीवन को धन्य करना है तो....समय के तत्वदर्शी गुरु की खोज करके उनकी शरागति प्राप्त करे और सच्चे जिज्ञासु होकर निर्मल मन से ज्ञान प्राप्त करके उस इन्द्रियातीत परमात्मा को अपने ह्रदय में प्राप्त करे..!
शब्द-श्रुति की एकता ही जीव और ब्रह्म का मिलन है...अंश और अंशी का मिलन है..भक्त और भगवान का मिलन है !
*****ॐ श्री गुरुवे नमः....!
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शब्द बिना सूरति अँधेरी..कहो कहा को जाय..!
द्वार ना पावे शब्द का..फिर फिर भटका खाय..!!
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बिना "शब्द" (एकाक्षर-ब्रह्म.) के श्रुति (जीव-मानवीय चेतना ) अंधी है...इतना अंधी है की..शब्द-ब्रह्म-परमेश्वर का द्वार नहीं प्राप्त कर पाती..और बार बार भटकती रहती है..!
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यह शब्द...ही परमेश्वर का पावन-नाम है..जिसे सत-नाम..और एकाक्षर-ब्रह्म के रूप में भी जाना जाता है..!
यही "महामंत्र" है....जिसे देवाधिदेव महादेव जी माता पार्वती के साथ निरंतर जपते रहते है...
जो सभी अमंगलो का समूल नाश करने वाला और सुमंगालो का निवास-धाम है...!
"मंगल भवन अमंगल हारी..उमा सहित जेहि जपत पुरारी...!!
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इसी शब्द-रूप परमेश्वर का ज्ञाम समय के तत्वदर्शी महान-पुरुष से प्राप्त होता है..!
एक सच्चे जिज्ञासु ..प्रभु प्रेमी-भक्त को यह ज्ञान देकर..उसकी सोयी हुयी चेतना को जाग्रत करके श्रुति(चेतना का सुक्ष्म-रूप) को ह्रदय में विद्यमान "शब्द" से जोड़ने का काम समय के तत्वदर्शी गुरु द्वारा ही..कृपापूर्वक किया जाता है..!
इस घोर मायामय संसार में...माया की इतनी विकराल व्यापकता है..की मनुष्य मात्र बहिर्मुखी होकर अपने जीवन का सुख और शांति..भौतिक जगत के पदार्थो में खोजता फिर रहा है..!
नैसर्गिक और चिरस्थायी सुख और संतुष्टि..तो...शब्द-श्रुति के मिलन से ही संभव है..!
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जीवन को धन्य करना है तो....समय के तत्वदर्शी गुरु की खोज करके उनकी शरागति प्राप्त करे और सच्चे जिज्ञासु होकर निर्मल मन से ज्ञान प्राप्त करके उस इन्द्रियातीत परमात्मा को अपने ह्रदय में प्राप्त करे..!
शब्द-श्रुति की एकता ही जीव और ब्रह्म का मिलन है...अंश और अंशी का मिलन है..भक्त और भगवान का मिलन है !
*****ॐ श्री गुरुवे नमः....!
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