ईश्वर की प्राप्ति......!
जो सभी ऐश्वर्यों का सवामी...एकरस...चिन्मय...सत-चित -आनंद स्वरूप..निर्मम..निराकार.निर्मो ही...निष्प्रभ और अलौकिक है.....वाही परम-प्रभु-पतामेश्वर यत्न-पूर्वक....अपनी चेतन से..चेतन में स्थित और स्थिर हो जाने पर ..हृदयाकाश में दैदीप्यमान है..!
गुरु नानकदेवजी कहते है..
"जे सौ चन्दा उगवे..सूरज चढ़े आकाश......
ऐसा चदन होडिया..गुरु बिनु घोर अंधार....!
...हृदयाकाश में ऐसा अलौकिक दैदीप्यमान प्रकाश है...जिसके आगे सैकड़ो सूरज और चन्द्रमा के प्रकाश भी फीका है...!
लेकिन गुरु-कृपा के बिना इसकी प्राप्ति असंभव है..!
******
परमात्मा कही और नहीं..अपने अन्दर ही है...!
संत ब्रह्मनान्दजी कहते है....
"घट भीतर उजियारा साधो..घट भीतर उजियारा रे....
पास बसे अरु नजर न आवे ढूढ़त फिरत गवारा रे.......!!!
.........
तभी संतो ने समझाया.....
ज्यो तिल माहि तेल है..ज्यो चकमक में आग..
तेरा साईं तुझमे...जाग सके तो जाग.....!!
*****
इसलिए हे मानव...उठो..जागो..और पाने अन्दर विराजमान परमेश्वर को सत्संगति..गुरु-कृपा और सतत-साधना से प्राप्त करके अपना मानव जीवन धन्य करो..!
***ॐ श्री गुरुवे नमः....!!
जो सभी ऐश्वर्यों का सवामी...एकरस...चिन्मय...सत-चित
गुरु नानकदेवजी कहते है..
"जे सौ चन्दा उगवे..सूरज चढ़े आकाश......
ऐसा चदन होडिया..गुरु बिनु घोर अंधार....!
...हृदयाकाश में ऐसा अलौकिक दैदीप्यमान प्रकाश है...जिसके आगे सैकड़ो सूरज और चन्द्रमा के प्रकाश भी फीका है...!
लेकिन गुरु-कृपा के बिना इसकी प्राप्ति असंभव है..!
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परमात्मा कही और नहीं..अपने अन्दर ही है...!
संत ब्रह्मनान्दजी कहते है....
"घट भीतर उजियारा साधो..घट भीतर उजियारा रे....
पास बसे अरु नजर न आवे ढूढ़त फिरत गवारा रे.......!!!
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तभी संतो ने समझाया.....
ज्यो तिल माहि तेल है..ज्यो चकमक में आग..
तेरा साईं तुझमे...जाग सके तो जाग.....!!
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इसलिए हे मानव...उठो..जागो..और पाने अन्दर विराजमान परमेश्वर को सत्संगति..गुरु-कृपा और सतत-साधना से प्राप्त करके अपना मानव जीवन धन्य करो..!
***ॐ श्री गुरुवे नमः....!!
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