"अहंकार" ही मनुष्य के पतन का कारण है..!
"बुद्धि" की मन के "संकल्प" और "विकल्प" (द्वन्द) का कारण है..!
"मोह" ही समस्त व्याधियो का मूल कारण है!
मानव-मन ही...मनुष्य के "बंधन" और "मुक्ति" का कारण है..!
*****इस प्रकार...मन...बुद्धि..और अहंकार...यह तीनो..ही..मनुष्य के साथ सदैव जीवन पर्यन्त लगे रहते है..!
"मन" का सुक्ष्म-रूप..बुद्धि" और उससे भी सूक्ष्मतर.."अहंकार"...यह मानव-चेतना की सांसारिक प्रकृति है....जो मया-रूपी विष में लिप-पुता रहता है..और जीवन में एक के बाद अनेकानेक क्लेशो को उत्पन्न करता रहता है..!!
*** "आध्यात्म-योग-अभ्यास और साधना से इन्द्रियों के राजा "मन" को नियंत्रण के करके..इसको इन्द्रियों के विषयो से हटाकर..सदगुरु द्वारा बताये गएअष्टांग-योग-क्रिया का जब साधक अभ्यास और साधना करता है..तब...चंचल-मन की सांसारिक प्रकृति शनै.शनै परिवर्तित होने लगती है..और इसकी तात्विक-प्रकृति....अर्थात..चैत न्य-रूप परिष्कृत होकर मानव-जीवन में गुणात्मक-परिवर्तन ला देता है..!
****आवश्यकता है....समय के तत्वदर्शी गुरु (सद्गुरु) की खोज करके उनकी सरनागति प्राप्त करने की....!
यही "सामीप्य-मुक्ति" है..!
**** ॐ श्री गुरुवे नमः......!
"बुद्धि" की मन के "संकल्प" और "विकल्प" (द्वन्द) का कारण है..!
"मोह" ही समस्त व्याधियो का मूल कारण है!
मानव-मन ही...मनुष्य के "बंधन" और "मुक्ति" का कारण है..!
*****इस प्रकार...मन...बुद्धि..और अहंकार...यह तीनो..ही..मनुष्य के साथ सदैव जीवन पर्यन्त लगे रहते है..!
"मन" का सुक्ष्म-रूप..बुद्धि" और उससे भी सूक्ष्मतर.."अहंकार"...यह मानव-चेतना की सांसारिक प्रकृति है....जो मया-रूपी विष में लिप-पुता रहता है..और जीवन में एक के बाद अनेकानेक क्लेशो को उत्पन्न करता रहता है..!!
*** "आध्यात्म-योग-अभ्यास और साधना से इन्द्रियों के राजा "मन" को नियंत्रण के करके..इसको इन्द्रियों के विषयो से हटाकर..सदगुरु द्वारा बताये गएअष्टांग-योग-क्रिया का जब साधक अभ्यास और साधना करता है..तब...चंचल-मन की सांसारिक प्रकृति शनै.शनै परिवर्तित होने लगती है..और इसकी तात्विक-प्रकृति....अर्थात..चैत
****आवश्यकता है....समय के तत्वदर्शी गुरु (सद्गुरु) की खोज करके उनकी सरनागति प्राप्त करने की....!
यही "सामीप्य-मुक्ति" है..!
**** ॐ श्री गुरुवे नमः......!
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