ॐ श्री सद्गुरु चरण कमलेभ्यो नमः...!
***
संसार में तीन तरह के मनुष्य है...!
रामचरितमानस में लंका कांड में जब रावण अकेला पड़ गया तब वह दुर्बचन कहता हुआ प्रभु श्री रामचन्द्रजी के सामने युद्ध के लिए आता है..भगवन उसे धिक्कारते हुए कहते है की व्यर्थ में वकवास करके जीत की कल्पना मत करो..बल्कि अपनी वीरता दिखाओ..!
प्रभु श्रीरामचंद्रजी कहते है...
सुनी दुर्बचन काल सम जाना...विहांसी बचन कह कृपा निधाना..!
सत्य सत्य तव सब प्रभुताई..जल्पसि जनि देखाऊ मनुसाई..!
जनि जल्पना करि सुजसु नसाहि..नीति सुनहि करहि छमा..!
संसार मंह पुरुष त्रिविध पातळ रसाल पनस समां..!!
एक सुमनपद एक सुमनफल एक फलाही केवल लागही..!
एक कहहि कहहि करहि.अपर .एक करहि कहत न बागही..!!
****
अर्थात..संसार में तीन तरह के मनुष्य है..जो क्रमशः..गुलाब..आम और कटहल की तरह अपनी प्रकृति रखते है..!
जैसे गुल में सीधे फुल निकालता है..तो ऐसे किस्म के मनुष्य केवल कहते रहते है..करते कुछ नही है..!
इसी प्रकार आम में पहले बौर(फुल) निकालता है फिर फल(टिकोरे) आते है..तो इस शेणी के मनुष्य कहते है और करते भी है..!
जैसे कटहल में सीधे ही फल निकालता है..तो इसी तरह तीसरे किस्म के लोग जो है..वह केवल करते है..कहते नहीं है..! यही शेणी उत्तम शेणी कही गयी है..!
इस प्रकार मनुष्य की तीन शेनिया हुई..निम्न..माध्यम और उत्तम..!
तभी कहा गया है...
प्राम्भाते न खलु विघ्न भयेन नीचे..प्राम्भ विघ्न विहिता विरमन्ति मध्याः !
विघ्ने पुनः पुनः प्रतिहन्यमाना..प्राम्भामुत्तमजना न परित्यजन्ति..!!
अर्थात.....विघ्नों के भय से निम्न प्रकृति के लोग किसी कार्य को प्रारंभ नहीं करते..!
माध्यम शेणी के लोग कार्य को प्रारंभ कर देते है लेकिन बिच में विघ्न आने पार कार्य को पूरा किये वगैर छोड़ देते है..!
उत्तम शेणी के मनुष्य बार-बार विघ्नों के आने पार भी किसी प्रारंभ किये हुए कार्य को बिना पूरा किये नहीं छोड़ते है..!!
तभी संतो ने कहा...
" कथनी मीठी खांड सी करनी विष सी होय..!
कथनी छोड़ करनी करे विष से अमृत होय..!!
*** अर्थात यही विष की जगह अमृत की प्राप्ति की कामना है..तो उत्तम शेणी के मनुष्य की तरह कथनी छोड़ कर करनी (कार्य-निष्पादन-क्रिया)को अपनाना चाहिए..!
ॐ श्री सद्गुरु चरण कमलेभ्यो नमः....!!
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संसार में तीन तरह के मनुष्य है...!
रामचरितमानस में लंका कांड में जब रावण अकेला पड़ गया तब वह दुर्बचन कहता हुआ प्रभु श्री रामचन्द्रजी के सामने युद्ध के लिए आता है..भगवन उसे धिक्कारते हुए कहते है की व्यर्थ में वकवास करके जीत की कल्पना मत करो..बल्कि अपनी वीरता दिखाओ..!
प्रभु श्रीरामचंद्रजी कहते है...
सुनी दुर्बचन काल सम जाना...विहांसी बचन कह कृपा निधाना..!
सत्य सत्य तव सब प्रभुताई..जल्पसि जनि देखाऊ मनुसाई..!
जनि जल्पना करि सुजसु नसाहि..नीति सुनहि करहि छमा..!
संसार मंह पुरुष त्रिविध पातळ रसाल पनस समां..!!
एक सुमनपद एक सुमनफल एक फलाही केवल लागही..!
एक कहहि कहहि करहि.अपर .एक करहि कहत न बागही..!!
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अर्थात..संसार में तीन तरह के मनुष्य है..जो क्रमशः..गुलाब..आम और कटहल की तरह अपनी प्रकृति रखते है..!
जैसे गुल में सीधे फुल निकालता है..तो ऐसे किस्म के मनुष्य केवल कहते रहते है..करते कुछ नही है..!
इसी प्रकार आम में पहले बौर(फुल) निकालता है फिर फल(टिकोरे) आते है..तो इस शेणी के मनुष्य कहते है और करते भी है..!
जैसे कटहल में सीधे ही फल निकालता है..तो इसी तरह तीसरे किस्म के लोग जो है..वह केवल करते है..कहते नहीं है..! यही शेणी उत्तम शेणी कही गयी है..!
इस प्रकार मनुष्य की तीन शेनिया हुई..निम्न..माध्यम और उत्तम..!
तभी कहा गया है...
प्राम्भाते न खलु विघ्न भयेन नीचे..प्राम्भ विघ्न विहिता विरमन्ति मध्याः !
विघ्ने पुनः पुनः प्रतिहन्यमाना..प्राम्भामुत्तमजना न परित्यजन्ति..!!
अर्थात.....विघ्नों के भय से निम्न प्रकृति के लोग किसी कार्य को प्रारंभ नहीं करते..!
माध्यम शेणी के लोग कार्य को प्रारंभ कर देते है लेकिन बिच में विघ्न आने पार कार्य को पूरा किये वगैर छोड़ देते है..!
उत्तम शेणी के मनुष्य बार-बार विघ्नों के आने पार भी किसी प्रारंभ किये हुए कार्य को बिना पूरा किये नहीं छोड़ते है..!!
तभी संतो ने कहा...
" कथनी मीठी खांड सी करनी विष सी होय..!
कथनी छोड़ करनी करे विष से अमृत होय..!!
*** अर्थात यही विष की जगह अमृत की प्राप्ति की कामना है..तो उत्तम शेणी के मनुष्य की तरह कथनी छोड़ कर करनी (कार्य-निष्पादन-क्रिया)को अपनाना चाहिए..!
ॐ श्री सद्गुरु चरण कमलेभ्यो नमः....!!