भारत-देश अध्यात्म की जन्म-स्थली है और विश्व-गुरु है..!
भारत-देश की सांस्कृतिक धरोहर यहाँ महापर्व और धार्मिक-पौराणिक-पारम्परिक गतिविधिया है..!
महान-पर्वो में शारदीय और चैत्र नवरात्रि पर्व हिन्दू धर्म संस्कृति की रीढ़ है..!
निरंतर नौ दिनों तक मात्रि-शक्ति की उपासना-अराधना बहुत धूम-धाम से होती है..
नौ दिनों तक भक्त-गाना कलश स्थापना के साथ दुश-नाशिनी और सुख-प्रदायिनी मां दुर्गा का पूजन-अर्चन बहुत भक्ति भाव और स्वच्छ -निर्मल तन-मन से करते है..!
लगातार नौ दिनों तक व्रत-उपवास रखते है..!
व्रतोपवास से तन-मन निर्मल हो जाता है..!
इन्द्रियाँ बहुत सहज-स्वाभाविक स्थित में आ जाती है..! निर्मल तन-मन में ही सभी गुणों की खान प्रभु- भक्ति का बीज अंगडाई लेने लगता है..!
अन्न या भक्ष-अभक्ष का परित्याग करने अथवा इसे सिमित कर देने से तन-मन में विद्यमान मॉल-विक्षेप बहुत हद तक मिट जाता है..!
शरीर के विभिन्न कोशो में निर्लिप्त भाव से व्याप्त आत्मा का परिशोधन- परिष्कार होने लगता है..जैसे मटमैले पानी की एक बाल्टी को शांत अवस्था में रख दिया जाय तो उसमे मिली हुई मिटटी या गन्दगी पेंदी में बैठ जाती है..वैसे ही..शरीर में निरंतर खाते-पीते रहने से जो मॉल-विक्षेप समाता रहता है..वह कुछ दिनों तक खाने-पिने की प्रकिया रोक देने से घटने लगता है..अर्थात..शरीर का शोधन होने लगता है..
नोर्मल तन-मन से ही भक्ति-रूपी अराधना संभव है..!
इसीलिए संतो ने गया...
भूले मन..! समझ के लाग लदनियां..!
थोड़ा लाद..अधिक मत लादे..टूट जाये तेरी गर्दनिया..!..भूले मन...
भूखा हो तो भोजन पा ले..
आगे हात न बनिया...! भूले मन....
प्यासा हो तो पानी पि ले..आगे घात न पनियां...भूले मन....
कहे कबीर ..सुनो भाई साधो..काल के हाथ कमनियां...भूले मन.....
...तो व्रतोपवास हमको अपने तन-मन को निर्मल बनाने और निर्मल भव से भक्ति करने का अवसर प्रदान करता है..!!
निर्मल-तन मन से ही सत्संग की प्राप्ति होती है..और सत्संग से ही परमात्म-ज्ञान संभव है..!
..ॐ श्री सद्गुरु चरण कमलेभ्यो नमः...!
भारत-देश की सांस्कृतिक धरोहर यहाँ महापर्व और धार्मिक-पौराणिक-पारम्परिक गतिविधिया है..!
महान-पर्वो में शारदीय और चैत्र नवरात्रि पर्व हिन्दू धर्म संस्कृति की रीढ़ है..!
निरंतर नौ दिनों तक मात्रि-शक्ति की उपासना-अराधना बहुत धूम-धाम से होती है..
नौ दिनों तक भक्त-गाना कलश स्थापना के साथ दुश-नाशिनी और सुख-प्रदायिनी मां दुर्गा का पूजन-अर्चन बहुत भक्ति भाव और स्वच्छ -निर्मल तन-मन से करते है..!
लगातार नौ दिनों तक व्रत-उपवास रखते है..!
व्रतोपवास से तन-मन निर्मल हो जाता है..!
इन्द्रियाँ बहुत सहज-स्वाभाविक स्थित में आ जाती है..! निर्मल तन-मन में ही सभी गुणों की खान प्रभु- भक्ति का बीज अंगडाई लेने लगता है..!
अन्न या भक्ष-अभक्ष का परित्याग करने अथवा इसे सिमित कर देने से तन-मन में विद्यमान मॉल-विक्षेप बहुत हद तक मिट जाता है..!
शरीर के विभिन्न कोशो में निर्लिप्त भाव से व्याप्त आत्मा का परिशोधन- परिष्कार होने लगता है..जैसे मटमैले पानी की एक बाल्टी को शांत अवस्था में रख दिया जाय तो उसमे मिली हुई मिटटी या गन्दगी पेंदी में बैठ जाती है..वैसे ही..शरीर में निरंतर खाते-पीते रहने से जो मॉल-विक्षेप समाता रहता है..वह कुछ दिनों तक खाने-पिने की प्रकिया रोक देने से घटने लगता है..अर्थात..शरीर का शोधन होने लगता है..
नोर्मल तन-मन से ही भक्ति-रूपी अराधना संभव है..!
इसीलिए संतो ने गया...
भूले मन..! समझ के लाग लदनियां..!
थोड़ा लाद..अधिक मत लादे..टूट जाये तेरी गर्दनिया..!..भूले मन...
भूखा हो तो भोजन पा ले..
आगे हात न बनिया...! भूले मन....
प्यासा हो तो पानी पि ले..आगे घात न पनियां...भूले मन....
कहे कबीर ..सुनो भाई साधो..काल के हाथ कमनियां...भूले मन.....
...तो व्रतोपवास हमको अपने तन-मन को निर्मल बनाने और निर्मल भव से भक्ति करने का अवसर प्रदान करता है..!!
निर्मल-तन मन से ही सत्संग की प्राप्ति होती है..और सत्संग से ही परमात्म-ज्ञान संभव है..!
..ॐ श्री सद्गुरु चरण कमलेभ्यो नमः...!
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