भगवद-भक्ति करने वालो की इस दुनिया में कमी नहीं है..!
लेकिन गुरु-भक्ति करने वालो की कमी अवश्य है..क्योकि गुरु का मिलना ही गोविन्द का मिलन है..जीव का ब्रह्म से मिलन है.आत्मा का परमात्मासे मिलन है..!
गुरु तक पहुँचने की पहली सीढ़ी भगवद-कृपा में निष्कपट-आस्था रखते हुए..सत्संग ..अर्थात ..संतो की संगति है..जबकि दूसरी सीढ़ी प्रभु के कथा-प्रसंगों में प्रेम रखना है..!!
रामचरितमानस में नवधा-भक्ति के बारे में संत-शिरोमणि तुलसीदासजी कहते है..
"प्रथम भक्ति संतन कर संग..दुसर रति मम कथा प्रसंगा..!
आगे फिर कहते है..
गुरु-पद-पंकज सेवा,,तीसरि भगति अमान..चौथि भगति मम गुन गन करहि कपट तजि मान..!
तो दो सीढियों के बाद ही साक्षात् गुरूजी के चरणों की सेवा का सवसार मिलता है..जो प्रभु की तीसरी भक्ति है..! हमेशा अहंकार-रहित होकर प्रभु का गुण-गान करना चौथी भक्ति है..! \
मंत्र जाप मन दृढ विस्वाषा..पंचम भजन सो वेद प्रकाशा..!
छत दम शील विरत बहु करमा..निरत निरंतर सज्जन धरमा..!!
सांतवे सम मोहि मय जग देखा..मो ते संत अधिक करि लेखा..!!
आठवे जथा लाभ संतोषा..सपनेहु नहि देखहि पार दोषा..!!
नवम सरल सब मन छलहीना....मम भरोस नहि हरष न दीना..!!
इन्हामे एकु जिनके होइ..नारी पुरूष सचाराचार कोई..!!
...जैसा वेदों में बताया गया है..दृढ-मन और विस्वाश के साथ प्रभु के नाका जाप करना पांचवी भक्ति है..! यही "नाम" गदा है..!
..नामा-प्रकार के कर्मो से विरत होकर शील-आचरण के साथ जो सत्पुरुष धर्माचरण में लगे रहते है ..वह प्रभु की छठवी भक्ति है..!
प्रभु के सर्वव्यापक स्वरूप को जानना और प्रभु से अधिक संतो को सम्मान देना सातवी भक्ति है..!
हिसा और जो भी मिल जाय ..उसी से संतोष करना और स्वप्न में भी दूसरो में दोष न देखना आठवी भक्ति है..!
निष्कपट-सरल मन से चाहे हर्ष हो या दुःख हो..प्रभु -कृपा में विस्वाश रखना नौवी भक्ति है..!
..इन नौ भक्ति में यदि कोई एक भक्ति इस चराचर-जगत में किसी स्त्री या पुरूष में आ जय ..तो उसका कल्याण निश्चित है..!
..इसप्रकार नवधा-भक्ति में प्रभु श्री रामचन्द्रजी ने शावरी को जो ज्ञान दिया..वह भव-सागर से पार उतारने वाला है..!
..संत-समागम में ही राम-भक्ति रूपी सुरसारी(सरस्वती) की धरा का ज्ञान होता है..!
यही अदृश्य धारा इस मानव घट में सुषुम्ना-नाडी कहलाती है..जो एक दिव्य - नाडी है..!
बिना संत-समागम और गुरु - कृपा से यह ज्ञान असंभव है..!
..इसलिए इस मानव - जन्म में अवश्य ही संत-पुरुषो की संगति प्राप्त करनी चाहिए..!
ॐ श्री सद्गुरु चरण कमलेभ्यो नमः.. ..!
लेकिन गुरु-भक्ति करने वालो की कमी अवश्य है..क्योकि गुरु का मिलना ही गोविन्द का मिलन है..जीव का ब्रह्म से मिलन है.आत्मा का परमात्मासे मिलन है..!
गुरु तक पहुँचने की पहली सीढ़ी भगवद-कृपा में निष्कपट-आस्था रखते हुए..सत्संग ..अर्थात ..संतो की संगति है..जबकि दूसरी सीढ़ी प्रभु के कथा-प्रसंगों में प्रेम रखना है..!!
रामचरितमानस में नवधा-भक्ति के बारे में संत-शिरोमणि तुलसीदासजी कहते है..
"प्रथम भक्ति संतन कर संग..दुसर रति मम कथा प्रसंगा..!
आगे फिर कहते है..
गुरु-पद-पंकज सेवा,,तीसरि भगति अमान..चौथि भगति मम गुन गन करहि कपट तजि मान..!
तो दो सीढियों के बाद ही साक्षात् गुरूजी के चरणों की सेवा का सवसार मिलता है..जो प्रभु की तीसरी भक्ति है..! हमेशा अहंकार-रहित होकर प्रभु का गुण-गान करना चौथी भक्ति है..! \
मंत्र जाप मन दृढ विस्वाषा..पंचम भजन सो वेद प्रकाशा..!
छत दम शील विरत बहु करमा..निरत निरंतर सज्जन धरमा..!!
सांतवे सम मोहि मय जग देखा..मो ते संत अधिक करि लेखा..!!
आठवे जथा लाभ संतोषा..सपनेहु नहि देखहि पार दोषा..!!
नवम सरल सब मन छलहीना....मम भरोस नहि हरष न दीना..!!
इन्हामे एकु जिनके होइ..नारी पुरूष सचाराचार कोई..!!
...जैसा वेदों में बताया गया है..दृढ-मन और विस्वाश के साथ प्रभु के नाका जाप करना पांचवी भक्ति है..! यही "नाम" गदा है..!
..नामा-प्रकार के कर्मो से विरत होकर शील-आचरण के साथ जो सत्पुरुष धर्माचरण में लगे रहते है ..वह प्रभु की छठवी भक्ति है..!
प्रभु के सर्वव्यापक स्वरूप को जानना और प्रभु से अधिक संतो को सम्मान देना सातवी भक्ति है..!
हिसा और जो भी मिल जाय ..उसी से संतोष करना और स्वप्न में भी दूसरो में दोष न देखना आठवी भक्ति है..!
निष्कपट-सरल मन से चाहे हर्ष हो या दुःख हो..प्रभु -कृपा में विस्वाश रखना नौवी भक्ति है..!
..इन नौ भक्ति में यदि कोई एक भक्ति इस चराचर-जगत में किसी स्त्री या पुरूष में आ जय ..तो उसका कल्याण निश्चित है..!
..इसप्रकार नवधा-भक्ति में प्रभु श्री रामचन्द्रजी ने शावरी को जो ज्ञान दिया..वह भव-सागर से पार उतारने वाला है..!
..संत-समागम में ही राम-भक्ति रूपी सुरसारी(सरस्वती) की धरा का ज्ञान होता है..!
यही अदृश्य धारा इस मानव घट में सुषुम्ना-नाडी कहलाती है..जो एक दिव्य - नाडी है..!
बिना संत-समागम और गुरु - कृपा से यह ज्ञान असंभव है..!
..इसलिए इस मानव - जन्म में अवश्य ही संत-पुरुषो की संगति प्राप्त करनी चाहिए..!
ॐ श्री सद्गुरु चरण कमलेभ्यो नमः.. ..!
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