निश्चयात्मक-बुद्धि..बुद्धि-योग
ॐ श्री सदगुरु चरण कमलेभ्यो नमः....!
***
भगवन श्रीकृष्ण गीता अध्याय-१ श्लोक..३८..३९..४०..४१ में कगते है.....
....सुख-दुःख..लाभ-हानि..जय-पराजय को सामान समझकर युद्ध के लिए खड़ा हो..तुम्हे पाप नहीं लगेया ..!..
यह ज्ञान तेरे हित के लिए कहा है..अब तू बुद्धि-योग सुन कि जिससे तू कर्म-बंधन को नाश करेगा..! इसमे कर्म का नाश भी नहीं है और फलस्वरूप दोष भी नहीं है..इस धर्म का थोडा भी साधन जन्म-मरना के बंधन से मुक्त करता है..!आत्मा कि हानि किसमे है और लाभ क्या है..यह विचार करने वाली निश्चयात्मक बुद्धि एक होती है..और जो अज्ञानी पुरुष विषयो की कामनाओ में लिप्त रहते है..उनकी बुद्धि अनेक प्रकार कि होती है..!
आगे श्लोक..४२..४३..४४ में भगवन कहते है....
जो सकामी पुरुष है..वेद वक्ता और विवाद में लीन है वे फलो की इच्छा वाले सकाम कर्मो का पक्ष करते है..वे अविवेकी जन कर्म फलो को भोगने तथा ऐश्वर्य की लालच में बहुत सी क्रियाओं के विस्तार वाली जिस दिखाऊ शोभायुक्त वाणी को कहते है..उस वाणी द्वारा हरे हुए चित्त वाले तथा भोग और ऐश्वर्य में आसक्ति वाले पुरुषो के अन्तः करना में निश्चयात्मक बुद्धि नहीं होती..!!
आगे भगवान श्लोक..४५..४६..४७..४८ में कहते है..
**इसलिए हे अर्जुन..! सव वेदों में तीनो गुणों के विषयो का वर्णन है..तू दुख०सुख आदि द्वंदों से रहित होकर नित्य वास्तु तथा योग में स्थित रहकर अत्मपारायण हो..!क्योकि धर्म को जानने वाले ब्राह्मण को भी वेदों की आवश्यकता नहीं रहती..!जिस प्रकार बड़े जलाशय को प्राप्त होने पार छोटे जलाशय की आवश्यकता नहीं रहती..!अतः तेरा जर्म करने में ही अधिकार है..फल में नहीं..! तू फलो की इच्छा न करके कर्म कर..!हे अर्जुन..आसक्ति को त्याग कर कर्मो के सिद्ध होने ..न होने की चिंता को छोड़कर कर्मो को करना बुद्धि-योग कहा जाता है..!
***
भव यह है..कि..फल कि इच्छा से रहित होकर निष्काम-भव से किया हुआ कर्म परमार्थ की प्राप्ति के लिए होता है..जबकि सकाम-भव से फल की इच्छा से किया गया कर्म बन्धनों से जकड देता है..! इसलिए..निष्काम कर्म से मुक्ति और सकाम कर्म से बंधन की प्राप्ति होती है..!
यह मानव के ऊपर निर्भर है..की अपना जीवन सार्थक करने के लिए वह कौन सा कर्म करे..?
निश्चयात्मक-बुद्धि..बुद्धि-योग से कर्म में प्रवृत्त होने और निर्लिप्त भव से कर्म करने मानव निश्चय ही परम-पद को प्राप्त करते है..!
ॐ श्री सदगुरु चरण कमलेभ्यो नमः.....!!!!!
ॐ श्री सदगुरु चरण कमलेभ्यो नमः....!
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भगवन श्रीकृष्ण गीता अध्याय-१ श्लोक..३८..३९..४०..४१ में कगते है.....
....सुख-दुःख..लाभ-हानि..जय-पराजय को सामान समझकर युद्ध के लिए खड़ा हो..तुम्हे पाप नहीं लगेया ..!..
यह ज्ञान तेरे हित के लिए कहा है..अब तू बुद्धि-योग सुन कि जिससे तू कर्म-बंधन को नाश करेगा..! इसमे कर्म का नाश भी नहीं है और फलस्वरूप दोष भी नहीं है..इस धर्म का थोडा भी साधन जन्म-मरना के बंधन से मुक्त करता है..!आत्मा कि हानि किसमे है और लाभ क्या है..यह विचार करने वाली निश्चयात्मक बुद्धि एक होती है..और जो अज्ञानी पुरुष विषयो की कामनाओ में लिप्त रहते है..उनकी बुद्धि अनेक प्रकार कि होती है..!
आगे श्लोक..४२..४३..४४ में भगवन कहते है....
जो सकामी पुरुष है..वेद वक्ता और विवाद में लीन है वे फलो की इच्छा वाले सकाम कर्मो का पक्ष करते है..वे अविवेकी जन कर्म फलो को भोगने तथा ऐश्वर्य की लालच में बहुत सी क्रियाओं के विस्तार वाली जिस दिखाऊ शोभायुक्त वाणी को कहते है..उस वाणी द्वारा हरे हुए चित्त वाले तथा भोग और ऐश्वर्य में आसक्ति वाले पुरुषो के अन्तः करना में निश्चयात्मक बुद्धि नहीं होती..!!
आगे भगवान श्लोक..४५..४६..४७..४८ में कहते है..
**इसलिए हे अर्जुन..! सव वेदों में तीनो गुणों के विषयो का वर्णन है..तू दुख०सुख आदि द्वंदों से रहित होकर नित्य वास्तु तथा योग में स्थित रहकर अत्मपारायण हो..!क्योकि धर्म को जानने वाले ब्राह्मण को भी वेदों की आवश्यकता नहीं रहती..!जिस प्रकार बड़े जलाशय को प्राप्त होने पार छोटे जलाशय की आवश्यकता नहीं रहती..!अतः तेरा जर्म करने में ही अधिकार है..फल में नहीं..! तू फलो की इच्छा न करके कर्म कर..!हे अर्जुन..आसक्ति को त्याग कर कर्मो के सिद्ध होने ..न होने की चिंता को छोड़कर कर्मो को करना बुद्धि-योग कहा जाता है..!
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भव यह है..कि..फल कि इच्छा से रहित होकर निष्काम-भव से किया हुआ कर्म परमार्थ की प्राप्ति के लिए होता है..जबकि सकाम-भव से फल की इच्छा से किया गया कर्म बन्धनों से जकड देता है..! इसलिए..निष्काम कर्म से मुक्ति और सकाम कर्म से बंधन की प्राप्ति होती है..!
यह मानव के ऊपर निर्भर है..की अपना जीवन सार्थक करने के लिए वह कौन सा कर्म करे..?
निश्चयात्मक-बुद्धि..बुद्धि-योग से कर्म में प्रवृत्त होने और निर्लिप्त भव से कर्म करने मानव निश्चय ही परम-पद को प्राप्त करते है..!
ॐ श्री सदगुरु चरण कमलेभ्यो नमः.....!!!!!
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