रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसी दासजी कहते है...
"शिव विरंची विष्णु भगवाना..उपजहि जासु अंस ते नाना..!
ऐसेहि प्रभु सेवक बस अहही..न्हागत केहू लीला तनु गहही..!!
****
जो एक कल्प में ब्रह्मा..विष्णु और शिव को उत्पन्न करने के बाद भी शेष (अक्षुण्य ) रहता है..वह परम-ब्रह्म-परमेश्वर सेवा के अधीन है..जो भक्तो के हितार्थ लीला का शरीर धरना करके धरा-धाम पार आते है..!
ॐ शदब पर जो विन्दु (>) है..वह इसी परम-ब्रह्म-परमेश्वर का उर्ध्वस्थान प्रदर्शित करता है..!
अकार..उकार--मकार..अर्थात..ब्रह्मा..विष्णु..महेश को प्रदर्शित करता है..जिसका उच्चारण क्रमशः "अ" ह्रदय से.."उ" कंठ से और "म" जिह्वा से होता है..किन्तु उर्ध्व-स्थित "." का उच्चारण बिलकुल ही नहीं होता..क्योकि यह तीनो अपर-वाणियो..क्रमशः..मध्यमा..पश्यन्ति और बखरी..से परे..परा-वाणी अर्थात..प्राणों की प्राण का विषय है..!
जब भक्त को सद्गुरुदेव्जी की अविरल-कृपा से तत्वज्ञान प्राप्त हो जाता है..तो तह परा-वाणी (WORD)..तत्व-साधना की प्रखरता से जब भक्त औत भगवान् का पूर्ण मिलन हो जाता है तब..स्वतः मुखरित होने लगाती है..!
भक्त और भगवन का मिलन समत्व-योग कहलाता है..जिसमे एकरस परमात्मा में भक्त रूपातीत अर्थात तद्रूप हो जाता है..!
धन्य है सद्गुरुदेव्जी की दया-दृष्टि और धन्य है वह भक्त..जो सद्गुरुदेव्जी की कृपा से परम-ब्रह्म-परमात्मा को प्राप्त हो जाता है..!
ॐ श्री सद्गुरु चरण कमलेभ्यो नमः....!!
"शिव विरंची विष्णु भगवाना..उपजहि जासु अंस ते नाना..!
ऐसेहि प्रभु सेवक बस अहही..न्हागत केहू लीला तनु गहही..!!
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जो एक कल्प में ब्रह्मा..विष्णु और शिव को उत्पन्न करने के बाद भी शेष (अक्षुण्य ) रहता है..वह परम-ब्रह्म-परमेश्वर सेवा के अधीन है..जो भक्तो के हितार्थ लीला का शरीर धरना करके धरा-धाम पार आते है..!
ॐ शदब पर जो विन्दु (>) है..वह इसी परम-ब्रह्म-परमेश्वर का उर्ध्वस्थान प्रदर्शित करता है..!
अकार..उकार--मकार..अर्थात..ब्रह्मा..विष्णु..महेश को प्रदर्शित करता है..जिसका उच्चारण क्रमशः "अ" ह्रदय से.."उ" कंठ से और "म" जिह्वा से होता है..किन्तु उर्ध्व-स्थित "." का उच्चारण बिलकुल ही नहीं होता..क्योकि यह तीनो अपर-वाणियो..क्रमशः..मध्यमा..पश्यन्ति और बखरी..से परे..परा-वाणी अर्थात..प्राणों की प्राण का विषय है..!
जब भक्त को सद्गुरुदेव्जी की अविरल-कृपा से तत्वज्ञान प्राप्त हो जाता है..तो तह परा-वाणी (WORD)..तत्व-साधना की प्रखरता से जब भक्त औत भगवान् का पूर्ण मिलन हो जाता है तब..स्वतः मुखरित होने लगाती है..!
भक्त और भगवन का मिलन समत्व-योग कहलाता है..जिसमे एकरस परमात्मा में भक्त रूपातीत अर्थात तद्रूप हो जाता है..!
धन्य है सद्गुरुदेव्जी की दया-दृष्टि और धन्य है वह भक्त..जो सद्गुरुदेव्जी की कृपा से परम-ब्रह्म-परमात्मा को प्राप्त हो जाता है..!
ॐ श्री सद्गुरु चरण कमलेभ्यो नमः....!!
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