ॐ श्री सद्गुरु चरण कमलेभ्यो नमः....!
****
परमात्मा के सर्व-व्यापक-स्वरूप का ज्ञान....!
एक प्राचीन कथा आती है..कि दक्षिणा भारत में पन्दरपुर में भगवान पन्दरीनाथ का अति प्राचीन मंदिर है.. नामदेव जी उनके अनन्य-भक्त थे..प्रतिदिन रात्रि में भगवान से उनकी वार्ता होती थी..मंदिर के पुजारियों को विस्मय होता था कि..जब मंदिर के कपट नंद रहते है..तब भी नामदेवजी कैसे अन्दर प्रवेश करते और भगवान से मुलाकात और वार्ता करते थे..?? प्रातः काल जब मंदिर के दरवाजे से ताले टूटे मिलते थे तो आश्चर्य होता था..! आखिर अपरीक्ष ली गयी..कि एक रात्री को सभी दरवाजो में ताले जड़ दिए गए..यह देखने के लिए कि कैसे प्रवेश करते है..रात्री हुयी..मंदिर कि एक तरफ कि दीवाल टूटी और नामदेव अन्दर गए ..भगवान से वार्ता हुयी..! सभी विस्मित थे..और उधर नामदेव को यह अहंकार हो गया..कि भगवान की उन पार असीम कृपा है जो उनसे बात करते है..!
एक दिन क्या हुआ कि...वही मंदी के पाऊस मुक्ताबाई जी का सत्संग हुआ..और उसमे नामदेव भी गए..!
सत्संग शुरू होने से पूर्व मुक्ताबैजी ने श्रोताओं से पूछा..कि जो लोग कच्चे हो वह अपना हाथ ऊपर उठा दे..! सभी श्रोतागण आश्चर्य में पड गए कि..अपने को कौन कच्चा बताये..! काफी देर तक सन्नाटा छाया रहा..! आखिर में श्रोताओं के बीच से एक कुब्हार खडा हुआ..उसने अपने हाथ में मिटटी का एक धेला लिया और सभी बैठे हुए षोताओ के सिर पार मिटटी का वह ढेला टकराता है..लेकिन..आश्चर्य कि किसी के सिर से टकराने से वह मिटटी का ढेला टूटता नहीं..जैसे ही वह नामदेव के सिर से ढेला टकराता है..वह चूर-चूर हो जाता है..!बस यही देखकर कुम्हार बोल पड़ता है..बाई जी.!...यही एक आदमी कच्चा है..! सत्संग समाप्त होता है और नामदेव को अस्चर्य होता है..कि साक्षात् भगवान पन्दरीनाथ से उनका सीधा सम्वाद है और भगवान की उन पार असीम कृपा है..फिर भी मुझे कच्चा कैसे बता दिया गया .??
नामदेव जी निश्चय करते है की..रात्रि में भगवान से इस बारे में वह पूछेगे..!..रात्री होती है..भगवान से मुलाकात होने पार नामदेवजी पूछते है..भगवन..!में आपका सच्चा भक्त हू..और आपसे मेरी सीधे बात होती है..जबकि और किसी से ऐसा कभी नहीं होया सका..फिर भी मुझे सत्संग में कच्चा बताया गया..? यह कैसे संभव हो सकता है..?? आप ही बताईये कि..क्या मै कच्चा हू..??
भगवन गंभी होकर कहते है..हाँ..नामदेव..वह कुम्हार सही कहता है..तुम बिलकुल कच्चे हो..कारण पूछने पार भगवान ने कहा..मेरे बताने से तुम्हे इसका सत्य-ज्ञान नहीं हो सकता..तुम्हे इसके लिए समय के तवादर्शी-गुरु के पाऊस जाना होगा..! गुरु के बारे में पूछने पार भगवन ने नामदेव को बताया ..निकट ही के गाँव में संत विशोवाजी रहते है..उन्ही के पाऊस जाओ और अपनी शंका का समाधान करो..!
नामदेवजी वहां जाते है..क्या देखते है कि..एक नंग-धडंग साधु वेशधारी मंदिर में बैठे है..उनका एक पैर मंदिर में बने शिव लिंग पार रखा हुआ है..यह देखकर नामदेव को गुस्सा आ गया..साध वेष धारी संत विसोवाजी ने नामदेवजी के मन कि बात को जानते हुए कहा..हे बच्चा..! यदि तू समझता है कि..मेरे शिवलिंग पार पैर रखने से भगवन शिव का अपमान हो रहा है..तो फिर तू मेरे पैर को हटाकर उस जगह रख दे जहाँ पार शिवलिंग नहीं है..!
नामदेवजी हाई करते है..किन्तु आश्चर्य..जिधर भी वह उनका पैर रखते है..वही शिवलिंग प्रकट हो जाता है..इसप्रकार पुरे मंदिर में शिवलिंग ही प्रकट हो गए और कोई जगह शेष नहीं बची..! उह देखकर संत विशोवाजी हंस पड़ते है..हे बच्चा..! तू सचमुच में ही कच्चा है..! तू ही बता भगवान कहां नहीं है..??
भगवान तो सर्वत्र..जर्रे-जर्रे में रमे हुए है..!..तू भगवन पन्दरीनाथ को केवल मंदिर तक ही सीमित समझता था न..लेकिन वह तो सर्वत्र..रमे हुए है..ऐसा कोई स्थान नहीं है जहां भगवान न हो..!!
अनत में संत विशोवाजी ने नामदेव को परमात्मा के सर्व व्यापक स्वरूप का ज्ञान कराया..!
ज्ञान पाकर नामदेवजी को अणि अल्पज्ञता का अहसास हुआ और ग्लानी भी हुयी.तथा प्रभु के सर्व व्यापक स्वरूप को जनका अपार प्रसन्नता हुयी..!
नामदेवजी घर लौटते है..पहले वह कुत्ते को दरवाजे से ही दांत कर भगा देते थे ...!
अब वही कुत्ता सामने आता है तो..घी का कटोरा लिए पीछे दौड़ते है...!
नामदेव जी पार भजन गाया गया ....
***जर्रे-जर्रे में है झांकी भगवान कि..किसी सूझ वाली आँख ने पहचान की..!
नामदेव ने पकाई रोटी कुत्ते ने उठायी..पीछे घी का कटोरा लिए जा रहे...
प्रभु..! सुखी रोटी तो न खाओ थोड़ा घी भी लेते जाओ..क्यों मुझसे अपनी सूरत छुपा रहे..??
तेरा-मेरा एक नूर फिर काहे को हुजुर..??
तुने सूरत है बनायीं स्वान की.....जर्रे-जर्रे में है झांकी भगवान कि......
****
भाव यह है कि..जिसको जबतक परमात्मा के सर्व व्यापक स्वरूप का ज्ञान प्राप्त नहीं होता..तब तक वह अल्पज्ञ..कच्चा ही है..!
समय के तत्वदर्शी महान पुरुष द्वारा ही जिज्ञासु को यह ज्ञान जन्य जाता है..और जैसे है ज्ञान मिलाता है..वह पक्का (पूर्ण-ज्ञानी) हो जाता है..!
इसलिए सच्चे ह्रदय से समय के तत्वदर्शी गुरु कि खोज करके परमात्मा के सर्व-व्यापक स्वरूप का ज्ञान प्राप्त करके अपना जीवन सफल करना चाहिए..!
***ॐ श्री सद्गुरु चरण कमलेभ्यो नमः.......!!!!
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परमात्मा के सर्व-व्यापक-स्वरूप का ज्ञान....!
एक प्राचीन कथा आती है..कि दक्षिणा भारत में पन्दरपुर में भगवान पन्दरीनाथ का अति प्राचीन मंदिर है.. नामदेव जी उनके अनन्य-भक्त थे..प्रतिदिन रात्रि में भगवान से उनकी वार्ता होती थी..मंदिर के पुजारियों को विस्मय होता था कि..जब मंदिर के कपट नंद रहते है..तब भी नामदेवजी कैसे अन्दर प्रवेश करते और भगवान से मुलाकात और वार्ता करते थे..?? प्रातः काल जब मंदिर के दरवाजे से ताले टूटे मिलते थे तो आश्चर्य होता था..! आखिर अपरीक्ष ली गयी..कि एक रात्री को सभी दरवाजो में ताले जड़ दिए गए..यह देखने के लिए कि कैसे प्रवेश करते है..रात्री हुयी..मंदिर कि एक तरफ कि दीवाल टूटी और नामदेव अन्दर गए ..भगवान से वार्ता हुयी..! सभी विस्मित थे..और उधर नामदेव को यह अहंकार हो गया..कि भगवान की उन पार असीम कृपा है जो उनसे बात करते है..!
एक दिन क्या हुआ कि...वही मंदी के पाऊस मुक्ताबाई जी का सत्संग हुआ..और उसमे नामदेव भी गए..!
सत्संग शुरू होने से पूर्व मुक्ताबैजी ने श्रोताओं से पूछा..कि जो लोग कच्चे हो वह अपना हाथ ऊपर उठा दे..! सभी श्रोतागण आश्चर्य में पड गए कि..अपने को कौन कच्चा बताये..! काफी देर तक सन्नाटा छाया रहा..! आखिर में श्रोताओं के बीच से एक कुब्हार खडा हुआ..उसने अपने हाथ में मिटटी का एक धेला लिया और सभी बैठे हुए षोताओ के सिर पार मिटटी का वह ढेला टकराता है..लेकिन..आश्चर्य कि किसी के सिर से टकराने से वह मिटटी का ढेला टूटता नहीं..जैसे ही वह नामदेव के सिर से ढेला टकराता है..वह चूर-चूर हो जाता है..!बस यही देखकर कुम्हार बोल पड़ता है..बाई जी.!...यही एक आदमी कच्चा है..! सत्संग समाप्त होता है और नामदेव को अस्चर्य होता है..कि साक्षात् भगवान पन्दरीनाथ से उनका सीधा सम्वाद है और भगवान की उन पार असीम कृपा है..फिर भी मुझे कच्चा कैसे बता दिया गया .??
नामदेव जी निश्चय करते है की..रात्रि में भगवान से इस बारे में वह पूछेगे..!..रात्री होती है..भगवान से मुलाकात होने पार नामदेवजी पूछते है..भगवन..!में आपका सच्चा भक्त हू..और आपसे मेरी सीधे बात होती है..जबकि और किसी से ऐसा कभी नहीं होया सका..फिर भी मुझे सत्संग में कच्चा बताया गया..? यह कैसे संभव हो सकता है..?? आप ही बताईये कि..क्या मै कच्चा हू..??
भगवन गंभी होकर कहते है..हाँ..नामदेव..वह कुम्हार सही कहता है..तुम बिलकुल कच्चे हो..कारण पूछने पार भगवान ने कहा..मेरे बताने से तुम्हे इसका सत्य-ज्ञान नहीं हो सकता..तुम्हे इसके लिए समय के तवादर्शी-गुरु के पाऊस जाना होगा..! गुरु के बारे में पूछने पार भगवन ने नामदेव को बताया ..निकट ही के गाँव में संत विशोवाजी रहते है..उन्ही के पाऊस जाओ और अपनी शंका का समाधान करो..!
नामदेवजी वहां जाते है..क्या देखते है कि..एक नंग-धडंग साधु वेशधारी मंदिर में बैठे है..उनका एक पैर मंदिर में बने शिव लिंग पार रखा हुआ है..यह देखकर नामदेव को गुस्सा आ गया..साध वेष धारी संत विसोवाजी ने नामदेवजी के मन कि बात को जानते हुए कहा..हे बच्चा..! यदि तू समझता है कि..मेरे शिवलिंग पार पैर रखने से भगवन शिव का अपमान हो रहा है..तो फिर तू मेरे पैर को हटाकर उस जगह रख दे जहाँ पार शिवलिंग नहीं है..!
नामदेवजी हाई करते है..किन्तु आश्चर्य..जिधर भी वह उनका पैर रखते है..वही शिवलिंग प्रकट हो जाता है..इसप्रकार पुरे मंदिर में शिवलिंग ही प्रकट हो गए और कोई जगह शेष नहीं बची..! उह देखकर संत विशोवाजी हंस पड़ते है..हे बच्चा..! तू सचमुच में ही कच्चा है..! तू ही बता भगवान कहां नहीं है..??
भगवान तो सर्वत्र..जर्रे-जर्रे में रमे हुए है..!..तू भगवन पन्दरीनाथ को केवल मंदिर तक ही सीमित समझता था न..लेकिन वह तो सर्वत्र..रमे हुए है..ऐसा कोई स्थान नहीं है जहां भगवान न हो..!!
अनत में संत विशोवाजी ने नामदेव को परमात्मा के सर्व व्यापक स्वरूप का ज्ञान कराया..!
ज्ञान पाकर नामदेवजी को अणि अल्पज्ञता का अहसास हुआ और ग्लानी भी हुयी.तथा प्रभु के सर्व व्यापक स्वरूप को जनका अपार प्रसन्नता हुयी..!
नामदेवजी घर लौटते है..पहले वह कुत्ते को दरवाजे से ही दांत कर भगा देते थे ...!
अब वही कुत्ता सामने आता है तो..घी का कटोरा लिए पीछे दौड़ते है...!
नामदेव जी पार भजन गाया गया ....
***जर्रे-जर्रे में है झांकी भगवान कि..किसी सूझ वाली आँख ने पहचान की..!
नामदेव ने पकाई रोटी कुत्ते ने उठायी..पीछे घी का कटोरा लिए जा रहे...
प्रभु..! सुखी रोटी तो न खाओ थोड़ा घी भी लेते जाओ..क्यों मुझसे अपनी सूरत छुपा रहे..??
तेरा-मेरा एक नूर फिर काहे को हुजुर..??
तुने सूरत है बनायीं स्वान की.....जर्रे-जर्रे में है झांकी भगवान कि......
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भाव यह है कि..जिसको जबतक परमात्मा के सर्व व्यापक स्वरूप का ज्ञान प्राप्त नहीं होता..तब तक वह अल्पज्ञ..कच्चा ही है..!
समय के तत्वदर्शी महान पुरुष द्वारा ही जिज्ञासु को यह ज्ञान जन्य जाता है..और जैसे है ज्ञान मिलाता है..वह पक्का (पूर्ण-ज्ञानी) हो जाता है..!
इसलिए सच्चे ह्रदय से समय के तत्वदर्शी गुरु कि खोज करके परमात्मा के सर्व-व्यापक स्वरूप का ज्ञान प्राप्त करके अपना जीवन सफल करना चाहिए..!
***ॐ श्री सद्गुरु चरण कमलेभ्यो नमः.......!!!!
वही पूर्ण-ज्ञानी है..जिसको परमात्मा के सर्व-व्यापक-स्वरूप का तत्वतः-ज्ञान है..!
ReplyDeleteवही समय का तत्वदर्शी महान-पुरुष ..तत्ववेत्ता-गुरु..संपूर्ण-सर्वज्ञ-सर्वज्ञाता-गुरु है...परमात्मा के सर्व्यापक-स्वरूप का तत्वतः-ज्ञान जिज्ञासु को करने में समर्थ है..!
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सोई जानही जेहि देई जनाई ..जानत तुम्हहि-तुम्हहि होइ जाई..!!
ॐ श्री सद्गुरु चरण कमलेभ्यो नमः.......!!