"आग लगी आकाश ने झड-झड गिरे अंगार..!
संत न होते जगत में तो जल मरता संसार..!!"
इस पुरु धरती पर प्रेम..शांति..सद्भाव..एकता..बंधुत्व..पारस्परिक-समानता..सामंजस्य..सहिष्णुता..सहभागिता..सहयोग और लोक-कल्याण का सन्देश देने वाला यदि कोई है..तो वह "संत-महान-पुरुष" ही है..!
धरती पर विद्वेष..हिंसा..अराजकता..आतंक..अनैतिकता..भ्रष्टाचार..अस्थिरता..साम्प्रदायिकता स्वार्थलिप्सा और अनेकानेक कुप्रवृत्तियो को उत्पन्न करने और फैलाने के लिए आसुरी प्रकृति वाले इंसानों की कमी नहीं है..आग लगाने में सर्वत्र-सभी को महारत हासिल है..लेकिन बुझाने के लिए कोई--कोई ही सामने आता है..!
मारने वाले से बचाने वाला महान होता है..!
जैसे विजली ले तार में निगेटिव और पोसितिवे दोनों तरह के तार होना जरुरी होता है तभी लाइट जलती है..वैसे ही संसार में अधर्म बढ़ जाने पर ऋणात्मक और घनात्मक..दोनों ही तरह की शक्तिओ का जब संघर्षण होता है..तभी संसार में धर्म की स्थापना के लिए महान-पुरुष अवतरित होते है..!
"जब-जब होइ धरम के हानी..बाढाही असुर अधम अभिमानी..!
तब तब प्रभु धरी मनुज सरीरा..हरही कृपानिधि सज्जन पीरा..!"..(रामचरितमानस)
**परितानाम साधुनाम..विनासाय च दुस्कृताम..धर्म संस्थापने सम्भावानी योगे युगे..! (गीता)
** स्पष्ट है..मनुष्य के रूप में भगवद-अवतार युग-युग में सजानो की पीड़ा के हराना और दुर्जनों के विनाश के लिए होता है..!
ऐसे भगवद-अवतार के रूप में मनुष्य के वेष में महान-पुरुष की पहचान करना बहुत ही कठिन है..जब तक कि वह अपनी पहचान स्वयं ही न करा दे..!
इनकी पहचान स्थूल-दृष्टि से नहीं अपितु ज्ञान-दृष्टि से होती है..!!
जब तक अज्ञान का समूल नाश करने वाला प्रभु के सर्व-व्यापक स्वरूप का ज्ञान समय के तत्वदर्शी गुरु से प्राप्त नहीं होगा..तब तक ज्ञान-दृष्टि नहीं खुल सकती है..!
इसलिए भगवद कृपा से ही सच्चे तत्वदर्शी गुरु की प्राप्ति होती है..जिनसे तत्व-ज्ञान सुलभ होता है..!
आवश्यकता है..तत्वदर्शी गुरु की खोज करने की..जो ज्ञान-दृष्टि देकर भगवद-दर्शन करा सके..!
**
ॐ श्री सद्गुरु चरण कमलेभ्यो नमः..!!
संत न होते जगत में तो जल मरता संसार..!!"
इस पुरु धरती पर प्रेम..शांति..सद्भाव..एकता..बंधुत्व..पारस्परिक-समानता..सामंजस्य..सहिष्णुता..सहभागिता..सहयोग और लोक-कल्याण का सन्देश देने वाला यदि कोई है..तो वह "संत-महान-पुरुष" ही है..!
धरती पर विद्वेष..हिंसा..अराजकता..आतंक..अनैतिकता..भ्रष्टाचार..अस्थिरता..साम्प्रदायिकता स्वार्थलिप्सा और अनेकानेक कुप्रवृत्तियो को उत्पन्न करने और फैलाने के लिए आसुरी प्रकृति वाले इंसानों की कमी नहीं है..आग लगाने में सर्वत्र-सभी को महारत हासिल है..लेकिन बुझाने के लिए कोई--कोई ही सामने आता है..!
मारने वाले से बचाने वाला महान होता है..!
जैसे विजली ले तार में निगेटिव और पोसितिवे दोनों तरह के तार होना जरुरी होता है तभी लाइट जलती है..वैसे ही संसार में अधर्म बढ़ जाने पर ऋणात्मक और घनात्मक..दोनों ही तरह की शक्तिओ का जब संघर्षण होता है..तभी संसार में धर्म की स्थापना के लिए महान-पुरुष अवतरित होते है..!
"जब-जब होइ धरम के हानी..बाढाही असुर अधम अभिमानी..!
तब तब प्रभु धरी मनुज सरीरा..हरही कृपानिधि सज्जन पीरा..!"..(रामचरितमानस)
**परितानाम साधुनाम..विनासाय च दुस्कृताम..धर्म संस्थापने सम्भावानी योगे युगे..! (गीता)
** स्पष्ट है..मनुष्य के रूप में भगवद-अवतार युग-युग में सजानो की पीड़ा के हराना और दुर्जनों के विनाश के लिए होता है..!
ऐसे भगवद-अवतार के रूप में मनुष्य के वेष में महान-पुरुष की पहचान करना बहुत ही कठिन है..जब तक कि वह अपनी पहचान स्वयं ही न करा दे..!
इनकी पहचान स्थूल-दृष्टि से नहीं अपितु ज्ञान-दृष्टि से होती है..!!
जब तक अज्ञान का समूल नाश करने वाला प्रभु के सर्व-व्यापक स्वरूप का ज्ञान समय के तत्वदर्शी गुरु से प्राप्त नहीं होगा..तब तक ज्ञान-दृष्टि नहीं खुल सकती है..!
इसलिए भगवद कृपा से ही सच्चे तत्वदर्शी गुरु की प्राप्ति होती है..जिनसे तत्व-ज्ञान सुलभ होता है..!
आवश्यकता है..तत्वदर्शी गुरु की खोज करने की..जो ज्ञान-दृष्टि देकर भगवद-दर्शन करा सके..!
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ॐ श्री सद्गुरु चरण कमलेभ्यो नमः..!!
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