भगवा सदाशिव रामचरितमानस में पार्वती जी से कहते है..
"उमा कहहु मै अनुभव अपना...सत हरि भजन जगत सब सपना....!"
****
अर्थात..परमात्मा का भजन ही सत्य है..यह संसार स्वप्नवत है..!
जगर अवस्था में स्थूल-नेत्रों से हम जो कुछ भी देखते है..वह सुषुप्ति के अवस्था में गहरी-निद्रा में पहुचने-मात्र से सब कुछ तिरोहित हो जाता है..!
जब तक जीव को ऐसी गहरी-निद्रा प्राप्त नहीं होती..तब तक स्तन-मन का तनाव और तृष्णा शांत नहीं हो पाती..!
दिन और रात्रि के चौवीस घंटो में रात्रि की छ घंटो की निद्रा जब जीव को प्रकृति-वश मिलती है..तब सारे सांसारिक..रिश्ते..धन-दौलत..पद-प्रतिष्ठा..संपदा ..यहाँ तक की मानव का यह शरीर भी गहरी निद्रा में तिरोहित हो जाता है..! जब तक ऐसी मीठी नींद नहीं मिलती..तब तक..न तो एक राजा को और न ही रंक को तन-मन का चैन मिलता है..सब कुछ भूलने से ही यह चैन प्राप्त होता है..!
इसलिए सदाशिव-शंकर भगवान कहते है...यह संसार स्वप्नवत है..!
बहिर्मुखीोकर स्थूल नेत्रों से हम वास्तविकता से परिचित नहीं हो सकते..!
हमें अंतर्मुखी होकर दिव्य-नेत्र से ही चराचर जगत और इसके नियंता परम-प्रभु-परमेश्वर का यथार्थ ज्ञान हो सकता है..!
इसलिए कहा गया है..परमात्मा का भजन ही सत्य है..!
प्रभु जी को उनके सत्य-नाम और रूप-स्वरूप में जानने का सत्प्रयास करना और इसी में तन और मन को तल्लीन करना ही भजन है..!
जहा तन लगता है..वही मन लगता है.और जहां मन लगता है वही धन लगता है .!
इसीलिए ..संत शिरोमणि तुलसीदासजी कहते है...
"श्रुति सिद्धांत यही उरगारी..राम भजो सब काज बिसारी..!"
अर्थात..सब कुछ (तन-मन-धन)अर्पित कर प्रभु का भजन करना ही सभी वेद-शास्त्रों के नीति-वचन है..!
ॐ श्री सद्गुरु चरण कमलेभ्यो नमः....!
Only the adoration of GOD is substantial in this world..!
The world is nothing but a lasting dream..!
"उमा कहहु मै अनुभव अपना...सत हरि भजन जगत सब सपना....!"
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अर्थात..परमात्मा का भजन ही सत्य है..यह संसार स्वप्नवत है..!
जगर अवस्था में स्थूल-नेत्रों से हम जो कुछ भी देखते है..वह सुषुप्ति के अवस्था में गहरी-निद्रा में पहुचने-मात्र से सब कुछ तिरोहित हो जाता है..!
जब तक जीव को ऐसी गहरी-निद्रा प्राप्त नहीं होती..तब तक स्तन-मन का तनाव और तृष्णा शांत नहीं हो पाती..!
दिन और रात्रि के चौवीस घंटो में रात्रि की छ घंटो की निद्रा जब जीव को प्रकृति-वश मिलती है..तब सारे सांसारिक..रिश्ते..धन-दौलत..पद-प्रतिष्ठा..संपदा ..यहाँ तक की मानव का यह शरीर भी गहरी निद्रा में तिरोहित हो जाता है..! जब तक ऐसी मीठी नींद नहीं मिलती..तब तक..न तो एक राजा को और न ही रंक को तन-मन का चैन मिलता है..सब कुछ भूलने से ही यह चैन प्राप्त होता है..!
इसलिए सदाशिव-शंकर भगवान कहते है...यह संसार स्वप्नवत है..!
बहिर्मुखीोकर स्थूल नेत्रों से हम वास्तविकता से परिचित नहीं हो सकते..!
हमें अंतर्मुखी होकर दिव्य-नेत्र से ही चराचर जगत और इसके नियंता परम-प्रभु-परमेश्वर का यथार्थ ज्ञान हो सकता है..!
इसलिए कहा गया है..परमात्मा का भजन ही सत्य है..!
प्रभु जी को उनके सत्य-नाम और रूप-स्वरूप में जानने का सत्प्रयास करना और इसी में तन और मन को तल्लीन करना ही भजन है..!
जहा तन लगता है..वही मन लगता है.और जहां मन लगता है वही धन लगता है .!
इसीलिए ..संत शिरोमणि तुलसीदासजी कहते है...
"श्रुति सिद्धांत यही उरगारी..राम भजो सब काज बिसारी..!"
अर्थात..सब कुछ (तन-मन-धन)अर्पित कर प्रभु का भजन करना ही सभी वेद-शास्त्रों के नीति-वचन है..!
ॐ श्री सद्गुरु चरण कमलेभ्यो नमः....!
Only the adoration of GOD is substantial in this world..!
The world is nothing but a lasting dream..!
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