MANAV DHARM

MANAV  DHARM

Thursday, May 24, 2012

जब तक मनुष्य का मन सांसारिक पदार्थो की तरफ भागता रहेगा..तब तक चित्त को शांति कदापि प्राप्त नहीं हो सकती..!
शांति का अनमोल खजाना तो अन्दर ही है..!
संसार के पदार्थो की प्राप्ति और भोग से क्षणिक  शांति-संतुष्टि मिल सकती है लेकिन..स्थायी या चिर-शांति कदापि नही प्राप्त हो सकती..!
जैसे भूख लगाने पर खाने की इच्छा होती है और भोजन कर लेने पर जब तक खाना हजम नही हो जाता..तब तक फिर खाने की चाह नही रहती..और जैसे ही खाना हजम होता है और भूख फिर लगाती है..तो फिर खाने बैठ जाते है..वैसे ही..इन्द्रियों के विषय-भोग भी बार-बार मनुष्य को भूख-प्यास की तरह सताते रहते है..लेकिन मानव इन सबसे चेताता नहीं..क्योकि..माया का प्रवाल प्रभाव उसकी चेतना को ढके रहता है..!
जैसे ही सत्संग सुलभ होता है और मन क्षण भर के लिए एकाग्र होकर सत्संग-भजन का श्रवण करता है..सुषुप्त -चेतना जाग्रत होने लगाती है..और माया रूपी विष का प्रभाव कम होने लगता है..और चित्त में एक प्रकार की स्थिरता आने लगाती है..यही स्थिरता चेतना की यथार्थ-प्रकृति का वोध करा देती है..!
इसिलए कहा गया ...
बड़े भाग पाईये सत्संग..बिनहि प्रयास होई भाव भंगा..!
बिनु सत्संग विवेक न होई..राम कृपा बिनु सुलभ न सोयी..!
बड़े भाग्य से ही सत्संग सुलभ होता है जहा बिना प्रयास से ही संसार से मोह भंग हो जाता है..और सत्संग के बिना विवेक जाग्रत नहीं होता..यह सत्संग भी प्रभु-कृपा से ही सुलभ होता है..!
आवश्यकता है..जीवन के ध्येय और ध्येय वास्तु को जानने और उसकी प्राप्ति के लिए तहेदिल से प्रयास करने की.....................