MANAV DHARM

MANAV  DHARM

Wednesday, July 18, 2012

गीता ..अध्याय-१२..श्लोक-५..६..७ में भगवान् श्रीकृष्णजी कहते है....

"......जो भक्तजन संपूर्ण कर्मो को मेरे अर्पण करके मेरे सगुन-रूप परमेश्वर को ध्यान-योग से चिंतन करते हुए भजते है ..उन प्रेमी भक्तो को मै शीघ्र ही संसार-सागर से पार उतारने व...ाला होता हु.......!!!"
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****भाव स्पष्ट है..निर्लिप्त-भाव से जो मनुष्य करने-योग्य..कर्तव्य-कर्म को बिना फल की इच्छा किये और इसे परमेश्वर को अर्पित करके कर्म करता हुया...समय के तत्वदर्शी-गुरु द्वार ज्ञान-दिक्धा से प्राप्त "अष्टांग-योग" की क्रप्या विधि से परमात्मा के सगुन-रूप...सद्गुरुदेव्जी..का ध्यान-योग से चिंतन करते हुए भजन-सुमिरण करता है....वह संसार-सागर से शीघ्र ही पार हो जाता है..!
जैसे योग की चार भुजाये है...शंख..चक्र..पद्म..गदा...>>>वैसे ही योग के चार साधन है...ध्यान..स्मरण..मुद्रा और श्रवण-क्रिया..!
सुदर्शन चक्र का ध्यान...
अचिन्त्य..अव्यक्त अक्षर का स्मरण..
मुद्रा द्वारा अमृत-पान..
श्रवण-क्रिया द्वार..अनहद-नाद का श्रवण..!
***उपरोक्त चार साधनों की सिद्धि के लिए "अष्टांग-योग" में कुल आठ सोपान है...
यम..नियम..आसन..प्राणायाम..प्रत्याहार..धारणा..ध्यान..और समाधि..!
***तत्वदर्शी-गुरु की खोज करके जो जिज्ञासु सच्चे ह्रदय और निर्मल-मन से उनकी शरणागति को प्राप्त करता है..वह नीश्चय ही गुरु-कृपा से इस दुर्लभ योग-सिद्धि को प्राप्त कर लेता है..!