Brahmanad Ji kahate hai...>>...>
गगन बीच अमृत का कुआ झरे सदा सुखकारी रे...!
पंगु पुरुष चढ़े बिनु सीढ़ी पीवी भर--भर झारी रे !!
बिना बजाये निस--दिन बाजे घंटा--शंख--नगारी रे..!!
बैरा सुनी--सुनी मस्त होत है तन की सुदी बिसारी रे..!!
बिना भूमि का महल बना है तामे हॉट उजारी रे..!!
अंधा देख--देख सुख पावे बात बतावे साड़ी रे..!!
मरता मर--मर के फिर जीवे बिन भोजन बलधारी रे..!!
"ब्रह्मानंद" संत--जन बिरला बूझे बात हमारी रे..!!
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