अगुनाहु--सगुनाहु नहि कछु भेदा..!
गावहि श्रुति--पुराण--मुनि--वेदा..!!
गावहि श्रुति--पुराण--मुनि--वेदा..!!
इन चारो अवाष्ठाओ में जाग्रत अवस्था को हम तीन भागो में बाँटते है...निश्चेष्ट..अर्ध--चेतन्य..और सचेष्ट..!! निश्चेष्ट में स्थावर..अर्ध--चेतन्य में पशु--पक्षी और बृक्ष आते है जबकि..सचेष्ट में मानव--जाति है..!
जो तुरीय अवस्था है..वह अति--चेतन्य की अवस्था है..जिसमे योगी हमेशा समाया रहता है..!
अतः तुरीयावस्था ही ज्ञान की अवस्था है....!!
जो तुरीय हो जाता है..वह सदाशिव को प्राप्त हो जाता है..!
धन्य है वह सदगुरुदेव जिसकी कृपा से यह ज्ञान फलीभूत होता है..
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