सुनि समुझिय जन मुदित मन मज्जहि अति अनुराग..!
लहही चार फल अक्षत तनू साधू समाज प्रयाग..!!
मज्जन फल पखिय तत्काला..काक होई पिक बकाही मराला..!!
सुनि आचारज करे जनि कोई..सत्संगति महिमा नहीं गोई..!!
साथ सुधरहि सत्संगति पाई..पारस परस कुधात सुहाई..!!
बिधि बस सुजन कुसंगति परही..फनी मणि सम निज गुण अनुसरही..!!
लहही चार फल अक्षत तनू साधू समाज प्रयाग..!!
मज्जन फल पखिय तत्काला..काक होई पिक बकाही मराला..!!
सुनि आचारज करे जनि कोई..सत्संगति महिमा नहीं गोई..!!
साथ सुधरहि सत्संगति पाई..पारस परस कुधात सुहाई..!!
बिधि बस सुजन कुसंगति परही..फनी मणि सम निज गुण अनुसरही..!!
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