MANAV DHARM

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Thursday, December 16, 2010

satsang mahima..!

सत्संग  की  महिमा...!
रामचरितमानस  में  गोस्वामी  जी  कहते  है..>>
" धन्य--धन्य  मै  धन्य  अति..यधपि  सब  बिधि  हीन..!
निज  जन  जान  राम  मोही  संत  समागम  दीन्ह..!!

बड़े  भाग  पाईये  सतसंगा ..बिनहि  प्रयास  होही  भाव--भंगा..!
बिनु  सत्संग  विवेक  न  होई   राम  कृपा  बिनु  सुलभ  न  सोई..!!

एक  घडी  आधी  घडी  आधी--ते--पुनि--आध..!
तुलसी  संगति  साधू  की  कटे  कोटि  अपराध..!

संत  मिलन  को  चाहिए  तजि  माया  अभिमान..!
ज्यो-ज्यो  पग  आगे  बढे  कोटिक  जग्य  सामान..!!
  सत्संग  की  महिमा  अपरम्पार  है..!!

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