सत्संग की महिमा...!
रामचरितमानस में गोस्वामी जी कहते है..>>
" धन्य--धन्य मै धन्य अति..यधपि सब बिधि हीन..!
निज जन जान राम मोही संत समागम दीन्ह..!!
बड़े भाग पाईये सतसंगा ..बिनहि प्रयास होही भाव--भंगा..!
बिनु सत्संग विवेक न होई राम कृपा बिनु सुलभ न सोई..!!
एक घडी आधी घडी आधी--ते--पुनि--आध..!
तुलसी संगति साधू की कटे कोटि अपराध..!
संत मिलन को चाहिए तजि माया अभिमान..!
ज्यो-ज्यो पग आगे बढे कोटिक जग्य सामान..!!
सत्संग की महिमा अपरम्पार है..!!
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