रामचरितमानस में..विभीषण जी हनुमान जी से कहते है...
"अब मोही भा भरोस हनुमंता...बिनु हरि--कृपा मिलहि नहि संता..!!
जो रघुबीर अनुग्रह कीन्हा..तो टुम्ह मोही दरस हठ दीन्हा..!!
हनुमान जी जबाब देते है..
प्रात लेहि जो नाम हमारा..तेहि दिन ताहि ना मिले अहारा..!!
सुनहु विभीषण प्रभु के रीती..करहि सदा सेवक पर प्रीती..!!
तात कवन मै परम कुलीना..कपि चंचल सबही विधि हीणा..!!
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