jhaankiyaa....!
जिन आँखों ने संतो के दर्शन नहि किया..वह आँखे..मोरपंखी आँखे है..!
जिन कानो ने संतो की वाणी को नहि सूना..वह कान सांप के बीबर की तरह है..!
" बिधि--हरि--हर--कावि--कोविद--वाणी कहत साधू--महिमा सकुचानी..!
सो मो सन कहि जात न कैसे ज्ञान--बनिक--मणि--गुण--गन जैसे..!!
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