MANAV DHARM

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Tuesday, April 16, 2013

संत मिलन सम सुख जग नाही..!



रामचरितमानस में संत शिरोमणि तुलसीदासजी कहते है......
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नहि दरिद्र सम दुःख जग माही..संत मिलन सम सुख जग नाही..!
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दरिद्रता  के साम्नां दुःख और सन्त०मिलन के सामान सुख संसार में कोई दूसरा नहीं है..!
धन-सम्पदा और अन्न-जल का अभाव ही दरिद्रता नहीं है..बल्कि..मानसिक संकीर्णता और निकृष्ट-विचार-दृष्टिकोण भी मानसिक दरिद्रता की श्रेणी में आते है..!
ऐसी मानसिक दरिद्रता से ऊपर उठाकर जो मानव..व्यष्टि से समष्टि की राह पकड़ता है..उसके उत्थान का मार्ग स्वतः ही प्रशस्त होने लगता है..!
संत-मिलन बड़े भाग्य से होता है....
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बड़े भाग पाईये सतसंगा..बिनहि प्रयास होई भाव भंगा...!
बिनु सत्संग विवेक न होई..राम कृपा बिनु सुलभ न सोई..!
..भगवद-कृपा और सौभाग्य के बिना सत्संग (संत-मोलन) सुलभ नहीं होता है..!
और बिना सत्संग के मनुष्य का विवेक (चेतन-शक्ति) जाग्रत नहीं होती..!
इसीलिए संत-मिलन के सामान दूसरा सुख संसार में नहीं है...
क्योकि...

एक घडी आधी घडी..आधी ते पुनि आध !
तुलसी संगती साधु की कटे कोटि अपराध..!
..लेश-मात्र के लिए भी यदि संत-मिलन होता है..तो भी अनगिनत पाप कट जाते है..!
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संत बड़े परमार्थी..धन ज्यो वरसे आय..!
तपन मिटावे और की..अपनी पारस लाय !!
संत-पुरुष परमाथ के लिए जीते-मरते है..और मेघ की तरह अपनी करुना-दयालुता को वरसाते है..पारस=मणि की तरह दूसरो की पीड़ा का हरण करते है..!
इसीलिए तुलसीदासजी कहते है..
तुलसी संगती साधू की बेगि करिजे जाय..!
दुरमति दूर गवायासी देसी सुमति बताय..!!
भाव स्पष्ट है..
संतो की संगती दौड़ कर..अर्थात बिना विलम्ब किये करना चाहिए..क्योकि..इससे कुबुद्धि तत्क्षण दूर हो जाती है..और सद्वुद्धि (सुमति) प्रकट हो जाती है..!
रामचरित मानस में मंदोदरी रावण को समझते हुए कहती है....
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सुमति कुमति सबके उर रहहि..नाथ पुराण निगम अस कहहि..!
जहा सुमति तह सम्पति नाना..जहा कुमति तह विपति निधना...!
अर्थात सुमति-कुमति सबके अन्दर बसी हुयी है..जहा सुमति है वहा समृद्धि है..जहा कुमति है..वह विपत्ति (दुःख) का निवास है..!
..इसीलिए ..हे मानव...!..अत्म०चेतन को जाग्रत करने के लिए संत-पुरुष की शरणागत हो..!
सत्संगति किम न करोति पुन्शाम.........!
******ॐ श्री गुरुवे नमः....!!

1 comment:

  1. Aap sant lik bolte to bahu.lekin govrmentpar aapkakoi koi man nahi.vasisht guru aur ramji kibat janiye.aum

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