MANAV DHARM

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Sunday, May 8, 2011

"नाम लेट भव सिन्धु सुखाही करहु विचार सुजन मन माही..!!"

संत तुलसीदासजी कहते है...
"राम भालु कपि कटक बटोरी..सेतु हेतु श्रम कीन्ह न थोरी..!.
"नाम लेट भव सिन्धु सुखाही करहु विचार सुजन मन माही..!!"
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीरामचंद्रजी ने अद्भुत नर-लीला करते हुए समुद्र पार सेतु बनाने के लिए भालु-बंदरी की सेना तैयार की और सेतु-निर्माण के लिए बहुत श्रम किया..लेकिन विचार करने की बात है..की..परम-पिता-परमेश्वर का वह कौन सा नाम है जिसके स्मरण मात्र से भी संसार-सागर (दुःख का समुद्र) सुख जाता है..!
यह वही "नाम" है जिसे भगवान सदाशिव-शंकरजी उमा सहित सदैव जपते रहते है..!
"मंगल भवन अमंगल हारी..उमा सहित जेहि जपत पुरारी.."
यह नाम परा-वाणी है..जिसका ज्ञान जिज्ञासु के ह्रदय में समय के तत्वदर्शी-महान-पुरुष द्वारा कराया जाता है..!

गोस्वामी तुलसीदासजी कहते है..
"हित अनहित पसु पच्छिहू जाना..मानुस तन गुन ज्ञान निधाना..!"
अर्थात..पशु-अक्षी भी ओअनी भलाई-बुराई की बात समझते है..मनुष्य का शरीर तो गुणों और ज्ञान का भण्डार है..!
गोस्वामी जी आगे कहते है..
"नत०तन सम नहि कवनेहु देही..जीव चराचर जचत जेही..!
सरग नरक अपवर्ग नसैनी..ज्ञान विराग भक्ति सुख देनी..!!"
अर्थात..मनुष्य के शरीर के सामान और कोई दूसरा शरीर नहीं है..जिसको पाने की लालसा सभी चराचर जीव करते है..!यह शरीर ही स्वर्ग--नरक और मोक्ष की सीढ़ी है जिसमे ज्ञान..वैराग्य और भक्ति का सूझ मिलाता है..!
इसलिए हे मानव..! उठो..जागो..और अपने लक्ष्य को प्राप्त करो..!

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