MANAV DHARM

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Tuesday, May 24, 2011

छोरम ग्रंथि पाँव जो सोई..तब यह जीव कृतारथ होइ..!

शिव और  शक्ति  का  संयोग  ही  मानव में  कड़  और  चेतन  रूपी ग्रंथि  का  कारण है ..! 
इस  ग्रंथि  से छूटना  ही जीव  की सदगति  है..!
जब तक "आत्म-ज्ञान" प्राप्त नहीं होता..तब तक..यह गुना-भेद  समझ  में नहीं आ सकता है..!
गोस्वामी तुलसीदासजी कहते है....
आतम अनुभव सुख सुप्रकासा..तव भव मूल भेद भ्रम नासा..!
प्रावल अविद्या  कर परिवारा..मोह आदि तम मिटहि अपारा ..!
तब सोई बुद्धि पाई उजियारा..उर गहि बैठि ग्रंथि निरुआरा..!
छोरम ग्रंथि पाँव जो सोई..तब यह जीव कृतारथ होइ..!
अर्थात ..आत्म-अनुभव ही वह सुखद..सुन्दर  प्रकाश है..जिसको प्राप्त करते  ही सारे भय..भेद   और भ्रम का नाश  हो जाता है..और प्रावल-अज्ञान  से उत्पन्न हुए मोह आदि तमो गुण नष्ट हो जाते है..ऐसी स्थिति में सुक्ष्म चेतना की शक्ति और भजन के प्रभाव से जड़-चेतन रूपी ग्रंथि निर्मल होकर छुटने लगाती है..!जैसे  ही यह ग्रंथि  जिस  जीव की छूटती है..वह तत्क्षण- कृतार्थ  हो जाता है..!
यहि आत्म-ज्ञान  और ज्ञानी  की महानता है..!
धन्य है वह तत्वदर्शी-गुरु..जिसकी कृपा से जीव का कल्याण हो जाता है..!
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ॐ श्री सदगुरु चरण कमलेभ्यो नमः....!

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