MANAV DHARM

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Saturday, May 28, 2011

"ज्ञान पंथ कृपान के धारा..परत खगेस होइ नहीं पारा..!

ज्ञान-योग की महिमा का वर्णन करते हुए काकभिशुन्द जी रामचरित मानस में गरुण जी से कहते है....
"ज्ञान पंथ कृपान के धारा..परत खगेस होइ नहीं पारा..!
जो निर्विघ्न पंथ निर्वाहाही..सो कैवल्य परम पद लहही..!
अति दुर्लभ कैवल्य परम पद..संत पुरान निगन आगम बद..!
राम भजन सोई मुकुति गोसाई..अनइच्छित आवहि वरियाई..!
जिमि थल बिनु जल रहि न सकाई कोटि भाति कोऊ करे उपाई..!
तथा मोक्ष सुख सुनु खगराई..रहि न सकई हरि भगति विहाई..!
अस विचारी हरि भगति सयाने..मुक्ति निरादर भगति लुभाने..!
भगति करत बिनु जातां प्रयासा ..संसृति मूल अविद्या नासा..!
भोजन करिय त्रिपिन हित लागी..जिमि सो आसन पाचवे जठरागी..!
असि हरि भगति सुगम सुखदायी..को अस मूढ़ न जाहि सोहाई..!
सेवक सेव्य भाव बिनु भव न त्रिय उरगारि..भजहु राम पार पंकज अस सिद्धांत विचारि..!
जो चेतन कंह जड़ करई जडाई करहि चेतन्य..अस समर्थ रघुनाथाकाही भजहि जीव ते धन्य..!
*****
इस प्रकार बहुत सुन्दर ढंग से ज्ञान की महिमा और इसके फल के बारे में उपरोक्त चौपाईयो में प्रकाश डाला गया है..!
ज्ञान-मार्ग तलवार की धार की तरह है..जिस पार पैर रख कर कोई पार नहीं हो सकता है..!
जो इस मार्ग पार निर्विघ्न-रूप से चलते है..वह कैवल्य-मोक्ष को प्राप्त करते है..!
यह कैवल्य-पद अति दुर्लभ है..जिसकी वंदना वेद-पुराण-संत लोग करते रहते है..!
प्रभु के भजनसे ही यह मुक्ति मिलाती है..जिसके प्रभाव से अनइच्छित फल सहज में सुलभ हो जाता है..!
जैसे कोटि उपाय करने पर भी बिना थल के जल नहीं रह सकता..वैसे ही बिना मोक्ष के सुख से प्रभु की भक्ति नहीं रह सकती..!
ऐसा विचार करके विवेकी प्रभु-भक्त गण मुक्ति का निरादर करते हुए प्रभु की भक्ति के लिए लालायित रहते है..!
प्रभु की भक्ति करने से बिना प्रयास से ही सृष्टि के मूल में व्याप्त अज्ञान का नाश हो जाता है..!
जैसे तृप्ति के लिए किये गए भोजन के अंश को जठराग्नि पचाती है..वैसे ही प्रभु की भक्ति परम सुखदायक है..और कौन ऐसा मुर्ख है जिसे यह भक्ति न सोहाती हो..?
बिना प्रेम और समर्पण भाव से प्रभु की सेवा करने से कोई भी संसार-सागर से पार नहीं उतर सकता है..!
जो जड़ को चेतन और चेतन को जड़ करने वाले है..उस सर्व-शक्तिमान-समर्थ परमा=प्रभु परमेश्वर का जो जीव भजन करता है..वह धन्य है..धन्य है...!!
*****
जय देव जय सदगुरुदेव..जय देव.....!!!

3 comments:

  1. The Way leading to Perfect Devotion and Knowledge is very precariously narrowed and sharp just like the sharpness of a sword..!
    Once a human follows this way without any interruption..he gets ultimate salvation..!
    The realm of Divinity is very excepyionate one..which cant be attained by fake devotion..!
    The constant meditation is the only means to accomplish such abode..!
    jus water cant sustain withou solid land..likewise devotion can never sustain withou salvation..!
    Just we take food to get live and the degestive power assimilates the intake-food..likewise ..the devotion to GOD is very pleasant and thrilling ..!
    It is HE who let the static matters be converted into dynami matter and the dynamic one into static...so..let the people of the world adore HIM..and ultimately attain BLISS n Salvation..!
    May GOD bless n love you all..!

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  2. In these chaupais, Giswamy Tulsi Das ji has kept devotion over knowledge In his views, knowledge can lead to liberation but gaining it and applying it properly is very difficult because first of all it creates ego. Devotion in the other hand , makes polite.

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  3. जय श्री हनुमानजी महाराज की जय सदा सहाय।

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