MANAV DHARM

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Wednesday, January 4, 2012

विद्या ददाति विनयम..विनयात पात्रताम..

एक गुरु होते है..जो विषय-विद्या का वोध कराते है..!
विषय का ज्ञान प्राप्त करके विद्यार्थी विद्वान..निपुण और गुणवान हो जाता है..!
" विद्या ददाति विनयम..विनयात पात्रताम..
पात्रतात धनमाप्नोती..धनात धर्म ततः सुखम...!!
अर्थात..विद्या के विनम्रता प्राप्त होती है..विनम्रता से योग्यता प्राप्त होती है..योग्यता से धन और धन से धर्म तत्पश्चात सुख प्राप्त होता है..!!
यह सभी कुछ लौकिक है..क्योकि इसका आदि और अनत दोनों है..! व्यक्ति के जीवन के साथ शुरू होता है..और नरना के उपरांत स्वतः समाप्त हो जता है..!
एक गुरु होते है..जो सच्चे जिज्ञासु को सनातन-तत्व (सत्य) का ज्ञान देते है..!
यह सनातन-तत्व ही जीवन *सृष्टि) और प्रलय (मरना) का आधार है..!
जो इसको जान लेता है..वह जन्म-मृत्यु के द्वन्द से परे हो जाता है..निर्विकल्प..तुरीय हो जाता है..!
इस सनातन-तत्व का ज्ञान ही मानव-धर्म है...!!
"धर्म ते विरति..योग ते गयाना..ज्ञान मोक्ष पद वेद बखाना..!!"
मानव-धर्म के तत्व को जान लेने से चित्त में विश्रांति उत्पन्न हो जाती है..इस विश्रांति ..वैराग्य से चित्त एकाग्र होने लगता है..चित्त की एकाग्रता से सनातन-तत्व स्वतः प्रकट हो जाता है..इस सनातन-तत्व का ज्ञान ही मुक्ति देने वाला (मोक्ष दायी )है..!
जो तत्वदर्शी-गुरु की शरणागत होकर इस सोपान तक पहुंचता है..वह जीवन-मुक्त हो जाता है..!
वह संसार-सागर में तैरने लगता है..!
इस ज्ञान को प्राप्त करके मानव का जीवन पारलौकिक हो जाता है..!
इस प्रकार जीवन में लौकिक और पारलौकिक दो प्रकार से कर्म करने का अवसर प्रत्येक मानव को परत होता है..इसी से इह लोक और पर लोक दोनों में कल्याण होता है..!
..विषय-विद्या-ज्ञान से व्यक्ति गुन बाण बनता है..तो तत्व-ज्ञान से वह पुण्यवान हो जाता है..!
****ॐ श्री सद्गुरुचाराना कमलेभ्यो नमः.....!!

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