MANAV DHARM

MANAV  DHARM

Tuesday, January 18, 2011

Adhyatma--vichar..!

चित्तवृत्तियो  का  निरोद्ग  ही  योग  है...योगः  चित्तवृत्ति  नारोधः...!!
मन  को  इन्द्रियों  के  विषयो  से  हटाकर  ध्याय  बस्तु  के  ध्यान  में  लगाना  ही  योग  है..!!
जैसे  पतंग  में  जब  तक  डोर  नहीं  बांधती..तब  तक  पतंग  कटी  पड़ी  रहती  है..और  जैसे  है  पतंगावाज  डोर  बाँध  एता  है...पतंग  ऊंचाइयो  पर  उड़ने  लगाती  है...!!
ऐसे  ही..एक  शिष्य  को  अपने  सदगुरुदेव  जी  से  ग्यान--दीक्षा  मिलाने  के  बाद..उसको  जो  गुरुमंत्र  मिलता  है..उस  गुरुमंत्र  का  एकाग्र  मन  से  भजन--सुमिरन  करने  से  उसकी  चित्तवृत्तिया  अंतर्मुखी  होती  चली  जाती  है..और  ह्रदय  में  स्थित  बीजरूप--परमात्मा  से  उसका  तादात्म्य  स्थापित  हो  जाता  है..!!
इसप्रकार..ह्रदय--स्थित  सनातन--तत्त्व ( शब्द--ब्रह्मा)  और  श्रुति (मन )  का  मेल  सदगुरुदेव  जी  की  कृपा  से  होता  है..जो  एक  साक्षी  के  रूप  में  सदैव  विद्यमान  रहते  है...!!
एकं  नित्यं  विमल्चालम..सर्वदा  साक्षिभूतं...!
भावातीतं  त्रिगुनाराहितम  सद्गुरुम  तम नमामि..!!

इसलिए  कहा  है....
कर  से  कर्म  करो  विधि--नाना..!
मन  राखो  जह  कृपानिधाना..!!
..प्रेम  से  बोलो...सदगुरुदेव  भगवान  की  जय....!!

1 comment:

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