यह संसार क्या है....??
ज्यो अन्धो का हाथिया....!!
असलियत तभी पता चलती है....जबकि ग्यान--चक्षु खुल जाते है...!!
वेदान्त--दर्शन में सत्य ही कहा है....
" ब्रह्मसत्यम जगंमित्थ्या जीवोब्रह्मेव्नापारह.....!!"
अर्थात ब्रह्म ही सत्य है..जगत (संसार ) मित्था( स्वप्ना ) है..जिव और ब्रह्म के ऊपर कोई नही है...!!
रामचरितमानस में शिवजी उमाजी से कहते है....
" उमा कहहु मै अनुभव अपना...सैट हरि भजन जगत सब सपना..!"
अर्थात..परमात्मा का भजन ही सत्य है..यह संसार स्वप्नवत है....!!
अपनी द्रिश्येंद्रियो..( चर्म चक्षुओ ) से हम जो भी देखते है..वह सब चर्ममय ( नाशवान ) ही है...!! क्योकि यह सब जाग्रत अवस्था में ही दृष्टिगोचर होती है..आँखे बाद कर लेने पर सब कुछ तिरोहित हो जाता है..!!
इसलिए भृकुटी के मध्य दिव्य नेत्र ( उपनयन ) स्थित है..जो मोक्ष का द्वार है..!
इसी नेत्र से आज्ञा--चक्र में सद्गुरु--कृपा से हम अपनी जीवनज्योति का दीदार कर सकते है..!!
मन की एकाग्रता से ध्यान--योग क्रिया द्वारा हम परमात्मा को प्रत्यक्षतः देख और उनके रूप--अवरूप का अनुभव कर सकते है...!!
यही मानव--जीवन की महानता है...!!
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