MANAV DHARM

MANAV  DHARM

Monday, January 24, 2011

GYAN--CHARCHA...!!

O  GURUDEV..!!  LEAD  ME   FROM  DARKNESS  TO  LIGHT..!..FRON  IGNORANCE  TO  KNOWLEDGE..!  ..FROM  ILLUSION  TO  TRUTH.....!!..FROM  MORTALITY  TO  ETERNITY...!!
सत्य  ही  कहा  है  की....>>>
"रूप--यौवन--संपन्ना  विशाल--कुल--सम्भवा....विद्याहीना  न  शोभन्ते  निर्गन्धा--इव--किंशुका..!!"
अर्थात...जैसे  पलाश  का  फूल  बहुत--सुन्दर  और  आकर्षक  होते  हुए  भी  सुगंध  से  विहीन  होता  है...वैसे  ही  रूप  और  यौवन  से  परिपूर्ण  तथा  विशाल  कुल  में  जन्म  लेने  पर  भी  यदि  मनुष्य  विद्द्याविहिन  ( अज्ञानी )  है  तो  वह  पलाश  के  फूल  के  सामान  सँसार  में  सुशोभित  नहीं  होता...!!!!
पुनश्च .....>>
आहार--निद्रा--भय--मिथुनानि..सामान्यमेतात  पशुभिर्निरानाम...!
ज्ञानेन--तेषाम  मधिको  विशेषो  ज्नानेनाहिया  पशुभिर्समाना..!!
अर्थात...>>
आहार--निद्रा--भय  और  मैथुन.. इन  चारो  में  मनुष्य  और  पशु  एक  समान  है..!!
सिर्फ  और  सिर्फ  ज्ञान  ही  ऐसा  है..जो  मनुष्य  को  पशु  से  अलग  करता  है...!!
जिसे  ग्यान  नहीं  है  वह.  .पशु   के  समान  है...!!

4 comments:

  1. शब्द--ब्रह्म की स्तुति करते हुए रामचरितमानस में गोस्वामीजी कहते है....>
    "जो सुमिरत सिधि होय गणनायक करिवर बदन..!
    करहु अनुग्रह सोई बुद्धि--राशि--शुभ--गुन--सदन..!! "
    अर्थात....जिसके स्मरण करने मात्र से सिद्धि प्राप्त हो जाती है..और भगवान श्री गणेशजी जिसकी बंदना करते रहते है...वह एकाक्षर--ब्रह्म मेरे ऊपर अनुग्रह करे जो बुद्धि की राशि और सभी शुभ--गुणों का घर है...!!
    ....इस प्रकार सबसे पहले गोस्वामीजी ने परम--पिटा--परमात्मा के पावन नाम की स्तुति की..जिससे उनको रामचरितमानस जैसे महाकाव्य जी रचना में सफलता प्राप्त हुयी...और जो सामवेद के सामान सम्पूर्ण विश्व में विख्यात हुआ..!!
    ...सदगुरुदेव महाराज जी की अहेतु की कृपा से हम सभी भक्तो को यही पावन नाम प्राप्त हुआ है..जो सामवेद के सामान फल देनेवाला है..अतः हम सबको इसकी उपासना--सुमिरन--स्तुति सच्चे ह्रदय और समर्पण--भाव से करनी चाहिए...!!

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  2. Light is Life..so is the Knowledge...! It is synonymous to Light..!!

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  3. रामचरित मानस में गोस्वामीजी कहते है...

    "तात तीनि अति प्रवाल खल..काम--क्रोध अरु लोभ..!

    मुनि--विज्ञान--धाम--मन करहु निमिष महू छोभ....!!



    लोभ के इच्छा--दंभ--बल..काम के केवल नारि..!

    क्रोध के परुष बचन बल..मुनिवर कहहि बीचारि..!!""



    ..अर्थात..काम,,क्रोध और लोभ..यह मनुष्य के तीन प्रबल शत्रु है..जो मुनि और ज्ञानी पुरुषो के मन में निमिष--मात्र के लिए छोभ उत्पन्न कर देते है..!

    लालसा--दंभ से लोभ को बल मिलाता है..कमनीय--नारी से काम को बल मिलाता है..जबकि कटु--बचन से क्रोध को बल मिलाता है....ऐसा ऋषि--मुनि लोग बिचार कर कहते है..!!

    ....आध्यात्मिक--जीवन की यात्रा में एक सच्चा--साधक इन तीनो प्रवाल--शत्रुओ पर अपनी योग--साधना और गुरु--कृपा से विजय प्राप्त कर लेता है....नित्य--प्रति की तपश्चर्या व् योग--साधना से उसमे इतना आत्म--संयम व् चिर--विश्रांति उत्पन्न हो जाती है कि इन प्रवाल--शत्रुओ का उसके तन--मन पर कोई असर नहीं पड़ता..!!

    ..जब--तक जिह्वा बाहर लप--लप करती रहेगी.इस दुर्गम .संसार--सागर में जीव डूबता रहेगा..गुरु-कृपा और ताप-साधना से जैसे ही जिह्वा अन्दर की ओर स्वाभाविक--रूप में प्रवेश कर जाएगी..जीव की गति अंतर्मुखी होती चली जाएगी..!!

    ..अतः..अपना कल्याण चाहनेवाले धर्मात्मा--पुरुष सदैव साधनारत रहते है..!!

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  4. Just a dumb can not reveal the taste of juggery..likewise the expression of the delight behind the realisation of the SUBLIME..SUBTLE N SUPREME-CONSCIOUS..is hard and beyond revelation..!!

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