मुक्तिदाता गुरु की महिमा अपरम्पार है...!
" गुरु बिनु भाव--निधि तरै न कोई...जो बिरंचि--शंकर सम होई...!!"
अर्थात....गुरु के बिना कोई भी संसार--सागर से पार नहीं उतर सकता है.. !ऐसे गुरु ब्रह्मा और शिव के सामान होताकारी है..!!
आगे गोस्वामी जी कहते है....
" वारि माथे घृत हाई वरु सिकता ते वरु तेल...!
बिनु हरि भजन न भाव तरिय यह सिद्धांत अपेल..!!
अर्थात...पानी के मथने से घी और बालू के मथने से तेल भले ही प्राप्त हो जाय यानी ऐसे असंभव कार्य भले ही संभव हो जाय...लेकिन बिना प्रभु का भजन किये
संसार--सागर से पार उतरना असंभव है...!!
आगे गोस्वामी जी कहते है..>> भगवान श्री रामचंद्र जी ने अपनी भक्ति के लिए हिव जी के भजन को अनिवार्य बताया...>>
" औरहु एक सुगुप्त मत सबहि कहहु कर--जोरि..!
शंकर--भजन बिना नर भगति न पावही मोरि..!!"
...तो यह "शंकर--भजन" क्या है..??
यहि हमको गुरु जी से ज्ञान के रूप में प्राप्त होता है..!!
इसी " शंकर--भजन" के बारे में गोस्वामी जी कहते है...>>
"महामंत्र जोई जपत महेशु...कासी मुकुत हेतु उपदेसू...!!"
अर्थात...शंकर--भजन वह " महामंत्र " है...जिसको भगवान सदाशिव शंकर जी सदैव जपते रहते है..और मुक्ति के लिए इसका कासी में उपदेश करते रहते है...!!
...इसप्रकार इस महामंत्र का जप ही मानव की मुक्ति का कारक है...!!
यहि गायत्री--विद्या है..परा--वाणी है..जार--विद्या है....!
गीता के अनुसार यह..राज--विद्या गोपनियो का भी गोपनीय है..."राजविद्या राजगुह्यं "
सत्य ही कहा है....>>>
" अजपा नाम गायत्री योगिनाम मोक्षदायिनी...!
यस्य संकल्पमात्रें सर्वपाप्ये प्रमोच्यते...!!"
अर्थात..प्राणों में प्रतिष्ठित माँ .गायत्री ही वह अजपा--जप है..जो योगियों को मोक्ष देनेवाली है..और जिसके संकल्प मात्र से ही सभी पापो का नाश हो जाता है...!!
...इसलिए..हे मानव. !.उठो..जागो..और इस गायत्री--महाप्राण--विद्या को जानकार अपना कल्याण करो...!!
" गुरु बिनु भाव--निधि तरै न कोई...जो बिरंचि--शंकर सम होई...!!"
अर्थात....गुरु के बिना कोई भी संसार--सागर से पार नहीं उतर सकता है.. !ऐसे गुरु ब्रह्मा और शिव के सामान होताकारी है..!!
आगे गोस्वामी जी कहते है....
" वारि माथे घृत हाई वरु सिकता ते वरु तेल...!
बिनु हरि भजन न भाव तरिय यह सिद्धांत अपेल..!!
अर्थात...पानी के मथने से घी और बालू के मथने से तेल भले ही प्राप्त हो जाय यानी ऐसे असंभव कार्य भले ही संभव हो जाय...लेकिन बिना प्रभु का भजन किये
संसार--सागर से पार उतरना असंभव है...!!
आगे गोस्वामी जी कहते है..>> भगवान श्री रामचंद्र जी ने अपनी भक्ति के लिए हिव जी के भजन को अनिवार्य बताया...>>
" औरहु एक सुगुप्त मत सबहि कहहु कर--जोरि..!
शंकर--भजन बिना नर भगति न पावही मोरि..!!"
...तो यह "शंकर--भजन" क्या है..??
यहि हमको गुरु जी से ज्ञान के रूप में प्राप्त होता है..!!
इसी " शंकर--भजन" के बारे में गोस्वामी जी कहते है...>>
"महामंत्र जोई जपत महेशु...कासी मुकुत हेतु उपदेसू...!!"
अर्थात...शंकर--भजन वह " महामंत्र " है...जिसको भगवान सदाशिव शंकर जी सदैव जपते रहते है..और मुक्ति के लिए इसका कासी में उपदेश करते रहते है...!!
...इसप्रकार इस महामंत्र का जप ही मानव की मुक्ति का कारक है...!!
यहि गायत्री--विद्या है..परा--वाणी है..जार--विद्या है....!
गीता के अनुसार यह..राज--विद्या गोपनियो का भी गोपनीय है..."राजविद्या राजगुह्यं "
सत्य ही कहा है....>>>
" अजपा नाम गायत्री योगिनाम मोक्षदायिनी...!
यस्य संकल्पमात्रें सर्वपाप्ये प्रमोच्यते...!!"
अर्थात..प्राणों में प्रतिष्ठित माँ .गायत्री ही वह अजपा--जप है..जो योगियों को मोक्ष देनेवाली है..और जिसके संकल्प मात्र से ही सभी पापो का नाश हो जाता है...!!
...इसलिए..हे मानव. !.उठो..जागो..और इस गायत्री--महाप्राण--विद्या को जानकार अपना कल्याण करो...!!
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