MANAV DHARM

MANAV  DHARM

Thursday, January 27, 2011

कुल  चार  प्रकार  से  मुक्ति  मानव--शारीर  से  मिलाती  है...>>
सालोप्य...सामीप्य..सारुप्य..और  सायुज्य...!
सामीप्य  मुक्ति  के  बारे  में  कहा  है..की...>>
बड़े  भाग  मानुष  तन  पावा  ...सुर--दुर्लभ  सद्ग्रंथान्ही  गावा..!!
साधन--धाम  मोक्ष  कर  द्वारा...पाइ  न  जेहि  परलोक  संवारा...!!
...कि  मनुष्य  जा  शारीर  बड़े  भाग्य  से  मिलता  है..सभी  मुक्तिया  प्राप्त  करने  के  लिए  यह  शारीर  साधना  का  घर  है  और  आवागमन  के  चक्र  से  छूटने  के  किये  यह  मोक्ष--का--द्वार  है..!!
..इस  प्रकार  परमात्मा  के  लोक..( सालोक  )  में  मनुष्य  का  शारीर  लेकर  आना  ही  " सालोक्य "  मुक्ति  है...!
...सामीप्य  मुक्ति  तब  मिलाती  है..जब  मानव  संत--महान--पुरुषो  कि  समीपता  प्राप्त  करता  है..और  एकाग्र--चित्त  होकर  भक्ति--और--समर्पण--भाव  से  उनके  कल्याणकारी  बचानाओ  को  सुनता  है..तथा  इस  सत्संग  के  माध्यम  से  अपना  आत्मशोधन  करता  है..!
..सारुप्य  मुक्ति  तब  मिलती  है...जब  मानव  सत्संग  के  माध्यम  से  अपना  आत्मसोधन  करके  समय  के  तत्वदर्शी  महान  पुरुष  (सदगुरुदेव महाराज  जी ) से  ज्ञान  दीक्षा ( आत्मज्ञान ) प्राप्त  करके  अपने आध्यात्मिक -रूप  (सारुप्य ) का  ज्ञान  प्राप्त  कर  लेता  है..!!.
...सायुज्य  मुक्ति  सबसे  अंतिम  और  ध्येय  बस्तु  है...जबकि  एक  साधक.. सदगुरुदेव जी  द्वारा  बताये  हुए  क्रिया--योग  से  अपनी  प्रखर  साधना  और  गुरु--कृपा  से  तुरीयावस्था  को  प्राप्त  करके  अपनी  आत्म--चेतना  में  स्थित  होकर  परमात्म  स्वरूप  में  लीन  हो  जाता  है..  अर्थात  अतिचेतान्य  की  अवस्था  में  परमानन्द  को  प्राप्त  हो  जाता  है..!!
....इस  प्रकार  यह  स्पष्ट  है  कि...मनुष्य  का  यह  जीवन समस्त  लौकिक  कर्मो  को  निर्लिप्त  होकर  करते  हुए   केवल   मात्र   आवागमन  के  चक्र  से  छूटने  हेतु   साधना  करने  के  लिए ही   प्राप्त  जुआ  है...!!

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