"योग" क्या है...??
गणित में दो अंको का जोड़ योग कहलाता है...!
ऐसे ही अध्यात्मा में शब्द और श्रुति का मेल ही योग है...!!
जब तक व्यक्ति गुरु--दरबार में प्रवेश करके ज्ञान--दीक्षा नहीं प्राप्त कर लेता ...तब--तक वह माया में ही भटकता रहता है...!!
गुरु की शरणागत होते ही उसके जीवन की भटकन समाप्त हो जाती है..!!
उसको अपने ज्ञान--नेत्र का अभिज्ञान हो जाता है..और वह चर्ममय संसार से अपने चित्त को हटाकर शाश्वत ज्योति के दिग्दर्शन में लगा देता है...!!
ज्ञान--दीक्षा में प्राप्त हुए गुरु--मंत्र ( शब्द ) का एकाग्र मन से सुमिरन करते--करते सद्गुरु--कृपा से एक ऐसी अवस्था प्राप्त होती है...जबकि उसकी सुरति ( मनरूपी आत्मा )
गुरु--वाणी (शब्द) मे लीन हो जाती है...इसे ही शब्द और श्रुति का एकीकरण कहते है....!!
यह ऐसे परम--सौभाग्यशाली भक्तो को
प्राप्त होता है..जो गुरु के श्रीचरणों मे समर्पित होकर निरंतर अभ्यास मे लगे रहते है....!!
...यही ध्यात्मा का शाश्वत--सिद्धांत है.....!!
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