परमपिता--परमात्मा के सर्वव्यापक स्वरुप का ज्ञान.....!!
भगवान श्रीकृष्ण गीता में कहते है...." हे अर्जुन...मेरे चार प्रकार के भक्त है..>>
आर्ट...अर्थाथी..जिज्ञासु और ज्ञानी....!!
आर्ट भक्त वह है..जो दारुण-- दुःख..कष्ट के निवारण के लिए मुझे आर्त--भाव से पुकारता है..और मै य्सकी पुकार सुनकर मदद के लिए दौड़ पड़ता हाउ...!!
अर्थार्थी भक्त अपनी कामना--पूर्ति के लिए मुझे पुकारता है..और मै उसकी पुकार सुनकर उसकी कामना पूरी कर देता हू..!!
जिज्ञासु--भक्त मुझे और मेरे रूप--स्वरुप को जानने के लिए अपनी जिज्ञासा लिए इधर--उधर भटकता रहता है..किन्तु मुझे जान नहि पाटा है...जबकि ज्ञानी भक्त मुझे तत्त्व से जानकर मुझे ही प्राप्त ही जाता है..यही मेरा सर्वश्रेष्ठ भक्त है..और मेरे और उसके तत्त्व...अंशा और अंशी..एकीकृत हो जाते है...!!
ऐसा कोई विरला ही भक्त है जो तत्वदर्शी होता है....!!
भगवान श्रीकृष्ण आगे कहते है...." श्रद्दावान लभ्यते ज्ञानम्....."" को जिसके अन्दर श्रद्दा होती है उसको ही ज्ञान फलीभूत होता है...!!
इसलिए तत्वदर्शी महानपुरुष के सामने शाष्टांग दंडवत प्रणाम करके ज्ञान पूछना चाहिए...
इसप्रकार..सर्वव्यापक परमात्मा को तत्वतः जानने के लिए समय के तत्वदर्शी--महापुरुष की खोज करनी चाहिए...!!
रामचरितमानस में कहा है....>>
"गुरु बिनु होय की ज्ञान..ज्ञान की होय विराग बिनु..!
गावहि वेद पुराण सुख की लहहि हरि भगति बिनु...!!""
....जो गुरु--कृपा से परमात्मा सर्वव्यापक--स्वरुप को तत्वतः जानता है..वह ही तत्वदर्शी है..और उसके और परमात्मा के तार एकीकृत हो जाते है...!!
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