MANAV DHARM
Monday, January 17, 2011
Satsang..ganga...!
अलसस्य कुतो विद्या..अविद्यस्य कुतो धनं...!
अधनस्य कुतो मित्रं...अमित्रस्य कुतो सुखं....!!
.......सत्य ही कहा है की.....एक आलसी विद्या का परित्याग कर देता है....एक अज्ञानी धन का परित्याग कर देता है...एक निर्धन मित्र का परित्याग कर देता है..और एक मित्रविहीन व्यक्ति सुख का परित्याग कर देता है....!!
" ना चोरहार्यम ना च रजहार्यम...ना भात्रिभाज्यम ना च मारिकारी...!
व्ययेक्रिते बर्धतेयानित्यम..विद्याधनं सर्वधनं प्रधानम....!!"
अर्थात.....जिसे न चोर चुरा सकता है...न ही राजा जिसका हरण कर सकता है...न ही भाई जिसको बाँट ही सकता है..और जिसे मार--पित करके छिना भी नही जा सकता है... साथ ही ...व्यय करने से जो नित्य ही बढ़ता जाता है....वह विद्या धन..सभी धनो में श्रेष्ठ धन है.....!!!
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