MANAV DHARM
Wednesday, January 5, 2011
Gyan--Ganga..!
आत्म--तत्त्व की तत्वतः अनुभूति प्राप्त करना ध्येय बस्तु ..है..यह साशक की साधना और सदगुरु--कृपा पर निर्भर काता है..!
जब तक शब्द और श्रुति का मेल नही होता तब तक भक्त के ह्रदय में ज्ञान उद्घाटित नही होता.!
जिस भक्त को गुरु--कृपा प्राप्त हो जाती है..वह ज्ञान के प्रकाश से आलोकित हो जाता है..!
ज्ञानेन मुक्तिः...ज्ञान से ही मुक्ति होती है..जब तक जिज्ञासु को ज्ञान की आधारशिला नही बतायी जायेगी..वह ज्ञान प्राप्त करने हेतु प्रेरित नहि हो सकता है..!
ज्ञान की अनुभूति प्राप्त करके चुप--चाप बात जाना सत्कर्म नही है..!
सभी महान--पुरुषो ने ज्ञान को ह्रदय से जानकार उसका लोकहित में प्रचार--प्रसार किया..!
उनका उद्घोष था...सर्वेभवन्तु सुखिनः..सर्वेसंतु निरामयः..सर्वेभाद्रानी पश्यन्ति..माँ कश्चिदादुखाभाग्भावेत...!!
"जग का भला करो ..अपना भी भला होगा..!!
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