MANAV DHARM

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Monday, January 24, 2011

अध्यात्म का आश्चर्य....>>

अध्यात्म का आश्चर्य....>>
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संत ब्रह्मानन्दजी कहते है...
" अचरज देखा भारी साधो...अचरज देखा भारी रे...!
गगन बीच अमृत का कुआ झरे सदा सुखकारी रे..
पंगु--पुरुष चढ़े बिन सीढ़ी..पीवे भर--भर झारी रे... अचरज देखा....
बिना बजाये निश दिन बाजे..घंटा शंख नगारी रे...
बहरा सुन--सुन मस्त हॉट है..तन की सुधि बिसारी रे...!!अचरज देखा....
बिना भूमि के महल बना है..तामे होत उजारी रे..
अंधा देख--देख सुख पावे..बात बतावे शारी रे..!! अचरज देखा...
जीता मर--मर के फिर जीवे..बिन भोजन बलधारी रे...
ब्रह्मानंद संत--जन विरला......बूझो बात हमारी रे....अचरज देखा....

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