MANAV DHARM

MANAV  DHARM

Sunday, December 12, 2010

Bhajan Ganga....!

Brahmanad  Ji  kahate  hai...>>...>

अचरज  देखा  भारी  साधो..अचरज  देखा  भारी  रे..!
गगन  बीच  अमृत  का  कुआ  झरे  सदा  सुखकारी  रे...!
पंगु  पुरुष  चढ़े  बिनु  सीढ़ी  पीवी  भर--भर  झारी  रे  !!
बिना  बजाये  निस--दिन  बाजे  घंटा--शंख--नगारी  रे..!!
बैरा  सुनी--सुनी  मस्त  होत  है  तन  की  सुदी  बिसारी  रे..!!
बिना  भूमि  का  महल  बना  है  तामे  हॉट  उजारी  रे..!!
अंधा  देख--देख  सुख  पावे  बात  बतावे  साड़ी  रे..!!
मरता  मर--मर  के  फिर  जीवे  बिन  भोजन  बलधारी  रे..!!
"ब्रह्मानंद"  संत--जन  बिरला  बूझे  बात  हमारी  रे..!!

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